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६४६] छक्खंडागमे जीवट्ठाण
[१, १. छ लेस्सा, भवसिद्धिया, तिणि सम्मत्तं, सण्णिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा।
तेसिं चेव अपजत्ताणं भण्णमाणे अस्थि एयं गुणट्ठाणं, एओ जीवसमासो, छ अपजत्तीओ, सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, चत्तारि गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, तिण्णि जोग, इत्थिवेदेण विणा दो वेद, चत्तारि कसाय, तिण्णि णाण, असंजम, तिण्णि दसण, दव्वेण काउ-सुक्कलेस्साओ, भावेण छ लेस्साओ; भवसिद्धिया, तिष्णि सम्मत्तं, सणिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता हाँति अणागारुवजुत्ता वा।
कायजोगि-संजदासजदाणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणट्ठाणं, एओ जीवसमासो, छ पजत्तीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णाओ, दो गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, ओरालियकायजोगो, तिण्णि वेद, चत्तारि कसाय, तिणि णाण, संजमासंजमो, तिणि दंसण,
तीन दर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक ये तीन सम्यक्त्व, संज्ञिक, आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
___ उन्हीं काययोगी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंके अपर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने परएक अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान, एक संज्ञी-अपर्याप्त जीवसमास, छहों अपर्याप्तियां, सात प्राण, चारों संज्ञाएं, चारों गतियां, पंचेन्द्रियजाति, वसकाय, औदारिकमिश्रकाययोग, वैकि यिकमिश्रकाययोग और काणकाययोग ये तीन योग; स्त्रीवेदके विना दो वेद, चारों कषाय, आदिके तीन ज्ञान, असंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे कापोत और शुक्ल लेश्याएं, भावसे छहों लेश्याएं; भव्यासिद्धिक, औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक ये तीन सम्यक्त्व; संक्षिक, आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
___ काययोगी संयतासंयत जीवोंके आलाप कहने पर-एक देशसंयत गुणस्थान, एक संशी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, चारों संज्ञाएं, तिर्यंचगति और मनुष्यगति ये दो गतियां, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, औदारिककाययोग, तीनों वेद, चारों कषाय, आदिके तीन शान, संयमासंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावसे
नं. २६४ काययोगी असंयतसम्यग्दृष्टि जीपोंके अपर्याप्त आलाप. |गु.। जी. प. प्रा. सं. ग. इं. का. यो. वे. क शा. संय. द. ले. भ. स. संनि. आ. । उ.
अवि. -
सं. अ. अ.
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औ.मि. पु. Fi | वै.मि. न.
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मति. अस. के.द. का. म. औप. सं. आहा. साका. श्रुत. विना. शु. क्षा. अना. अना.
भा.६ क्षायो.
अव.
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