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६४४] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १. तिणि जोग, तिण्णि वेद, चत्तारि कसाय, दो अण्णाण, असंजमो, दो दंसण, दव्वेण काउ-सुक्कलेस्साओ, भावेण छ लेस्सा; भवसिद्धिया, सासणसम्मत्तं, सणिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होति अणागारुवजुत्ता वा।
कायजोगि-सम्मामिच्छाइट्ठीणं भण्णमाणे अत्थि एयं गुणहाणं, एगो जीवसमासो, छ पञ्जत्तीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णाओ, चत्तारि गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, वे जोग, तिणि वेद, चत्तारि कसाय, तिणि णाणाणि तीहि अण्णाणेहि मिस्साणि, असंजमो, दो दंसण, दव्य-भाषेहि छ लेस्साओ, भवसिद्धिया, सम्मामिच्छत्तं, सणिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता वा हाँति अणागारुवजुत्ता वा।
कायजोगि-असंजदसम्माइट्ठीणं भण्णमाणे अस्थि एवं गुणट्ठाणं, दो जीवसमासा, छ पज्जीओ छ अपजत्तीओ, दस पाण सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, चत्तारि गदीओ,
वैक्रियिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग ये तीन योग; तीनों वेद, चारों कषाय, आदिके दो अज्ञान, असंयम, आदिके दो दर्शन, द्रव्यसे कापोत और शुक्ल लेश्याएं, भावसे छहों लेश्याएं; भव्यसिद्धिक, सासादनसम्यक्त्व, संक्षिक, आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
काययोगी सम्याग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके आलाप कहने पर-एक सम्यग्मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, एक संझी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, चारों संक्षाएं, चारों गतियां, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, औदारिककाययोग और वैक्रियिककाययोग ये दो योग, तीनों वेद, चारों कषाय, तीनों अक्षानोंसे मिश्रित आदिके तीन शान, असंयम, आदिके दो दर्शन, द्रव्य और भावसे छहों लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, सम्यग्मिथ्यात्व, संक्षिक, आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
काययोगी असंयतसम्यग्दृष्टि जीवोंके सामान्य आलाप कहने पर-एक अविरतसम्यग्दृष्टि गुणस्थान, संक्षी-पर्याप्त और संज्ञी-अपर्याप्त ये दो जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, छहों अपर्याप्तियां; दशों प्राण, सात प्राण; चारों संज्ञाएं, चारों गतियां, पंचेन्द्रियजाति,
नं. २६१
काययोगी सम्यग्मिथ्यादृष्टि जीवोंके आलाप. का. यो. वे. क.| ज्ञा. संय. द. | ले. भ.
प. प्रा. स.
स. | संशि .
आ.
उ
सम्य. - सं.प. -
पचे. -- त्रस.
औ.१
ज्ञान. असं. चक्षु. भा. ६ म. सम्य. सं. आहा. साका.
अच
अना.
अज्ञा. मिश्र.
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