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________________ ६३६] छक्खंडागमे जीवाणं [ १,१. भावेहि छ लेस्साओ, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, मिच्छत्तं, सण्णिणो असण्णिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा 1 सासणसम्माट्ठिप्प हुडि जाव सजोगिकेवलि त्ति ताव मणजोगीणं भंगो । णवरि चत्तारि वचिजोगा वत्तव्वा । सजोगिकेवलिस्स सच्चवचिजोगो असच्च मोसवचिजोगो च भवदि । सच्चवचिजोगस्स सच्चमणजोग-भंगो | णवरि जत्थ सच्चमणजोगो तत्थ तं अवणेऊण सच्चवचिजोगो वत्तव्वो । मोसवचिजोगस्स वि मोसमणजोग-भंगो । वरि मोसवचिजोगो वत्तव्त्र । एवं सच्चमोसवचिजोगस्स वि वत्तव्वं । असच्चमो सवचिजोगस्स वचिजोग-भंगो | णवरि असच्चमोसवचिजोगो एक्को चैव वत्तव्वो । और भावसे छहों लेश्याएं, भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक, मिथ्यात्व, संज्ञिक, असंशिका आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं । सासादनसम्यग्दृष्टि गुणस्थान से लेकर सयोगिकेवली गुणस्थान तकके वचनयोगी जीवोंके आलाप मनोयोगी जीवोंके आलापोंके समान होते हैं। विशेष बात यह है कि वचनयोग आलाप कहते समय चार वचनयोग कहना चाहिए । सयोगिकेवली जिनके सत्यवचनयोग और असत्यमृषावचनयोग ये दो ही वचनयोग होते हैं । सत्यवचनयोगके आलाप सत्यमनोयोगके आलापोंके समान होते हैं । विशेष बात यह है कि आलाप कहते समय जहां पहले सत्यमनोयोग कहा गया है वहां उसे निकाल करके उसके स्थान में सत्यवचनयोग कहना चाहिए। मृषावचनयोगके आलाप भी मृषामनोयोगके आलापोंके समान होते हैं । विशेषता यह है कि मृषामनोयोगके स्थान पर मृषावचनयोग कहना चाहिए । इसीप्रकार से सत्यमृषावचनयोगके भी आलाप कहना चाहिये, अर्थात् उभयवचनयोगके आलाप सत्यमृषामनोयोगके आलापके समान जानना चाहिए । असत्यमृषावचनयोगके आलाप वचनयोगसामान्यके आलापोंके समान होते हैं । विशेषता यह है कि असत्यमृषावचनयोग आलाप कहते समय एक असत्यमृषावचनयोग ही कहना चाहिए । नं. २५१ गु. जी. प. प्रा. सं. ग. १५द्वी. प• ६ २० ४ ४ मि. त्री., ५ ९ च. १ ८ असं. " सं. "" वचनयोगी मिथ्यादृष्टि जीवोंके आलाप. इं. | का. ४ | १ ४ द्वी त्रस वच. त्री. Jain Education International यो. वे. | क. ज्ञा. | संय.) द. ले. | भ. स. संज्ञि. | आ. ३४ ३ १ २ अज्ञा. असं. चक्षु. अच. उ. २ द्र. ६ २ १ २ १ भा. ६ भ. मि. सं. आहा. साका. अ. असं. अना. For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001396
Book TitleShatkhandagama Pustak 02
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1940
Total Pages568
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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