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६३२] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १. होंति अणागारुवजुत्ता वा।
मणजोगि-संजदासजदाणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणट्ठाणं, एओ जीवसमासो, छ पज्जत्तीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णाओ, दो गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, चत्तारि मणजोग, तिण्णि वेद, चत्तारि कसाय, तिणि णाण, संजमासंजमो, तिण्णि दंसण, दवेण छ लेस्साओ, भावेण तेउ-पम्म-सुक्कलेस्साओ; भवसिद्धिया, तिणि सम्मत्तं, सण्णिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा ।
___ मणजोगि-पमत्तसंजदाणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणहाणं, एओ जीवसमासो, छ पज्जत्तीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णाओ, मणुसगदी, पंचिंदियजादी, तसकाओ, चत्तारि मणजोग, तिण्णि वेद, चत्तारि कसाय, चत्तारि णाण, तिणि संजम, तिणि दंसण, दव्वेण छ लेस्सा, भावेण तेउ-पम्म-सुक्कलेस्साओ; भवसिद्धिया, तिण्णि सम्मत्तं,
पयोगी होते हैं।
मनोयोगी संयतासंयत जीवोंके आलाप कहने पर-एक देशविरत गुणस्थान, एक संशी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, चारों संज्ञाएं, तिर्यंचगति और मनुष्यगति ये दो गतियां, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, चारों मनोयोग, तीनों वेद, चारों कषाय, आदिके तीन ज्ञान, संयमासंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावसे तेज, पद्म और शुक्ल लेश्याएं; भव्यसिद्धिक, औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक ये तीन सम्यक्त्व, संशिक, आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
मनोयोगी प्रमत्तसंयत जीवोंके आलाप कहने पर-एक प्रमत्तविरत गुणस्थान, एक संक्षी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, चारों संज्ञाएं, मनुष्यगति, पंचेन्द्रिय. जाति, असकाय, चारों मनोयोग, तीनों वेद, चारों कषाय, आदिके चार ज्ञान, सामायिक, छदोपस्थापना और परिहारविशुद्धि ये तीन संयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावसे तेज, पन और शुक्ल लेश्याएं; भव्यसिद्धिक, औपशमिक, क्षायिक और क्षायोपशमिक
नं २४७
| गु-जी
प.प्रा.
मनोयोगी संयतासंयत जीवोंके आलाप. का. यो. वे. क. | झा. | संय. द. ले. भ. स. संझि. आ. उ. । त्रस. मनो. मति- देश. के.द. भा. ३ म. औप सं. आहा. | साका. विना. शुभ. | क्षा.
अना. अव.
क्षायो.
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देश. - सं.प. -
श्रत.
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