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६१८] . छक्खंडागमे जीवाणं
[१, १. तेसिं चेव अपज्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणट्ठाणं, चत्तारि जीवसमासा चत्तारि अपजत्तीओ, तिण्णि पाण, चत्तारि सण्णाओ, तिरिक्खगदी, एइंदियजादी, साधारणवणप्फइकाओ, वे जोग, णqसयवेद, चत्तारि कसाय, दो अण्णाण, असंजमो, अचखुदसण, दव्येण काउ-सुक्कलेस्सा, भावेण किण्ह-णील-काउलेस्साओ; भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, मिच्छत्तं, असण्णिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुखजुत्ता होंति अणागारुवजुत्ता वा।
बादरसाधारणाणं भण्णमाणे अत्थि एयं गुणट्ठाणं, चत्तारि जीवसमासा, चत्तारि पज्जत्तीओ चत्तारि अपज्जत्तीओ, चत्तारि पाण तिण्णि पाण, चत्वारि सण्णाओ, तिरिक्खगदी, एइंदियजादी, बादरसाधारणवणप्फइकाओ, तिण्णि जोग, णQसयवेद, चत्तारि कसाय, दो अण्णाण, असंजमो, अचक्खुदंसण, दव्येण छ लेस्सा, भावेण किण्ह
उन्हीं साधारण वनस्पतिकायिक जीवोंके अपर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने परएक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, बादरनित्यनिगोद-अपर्याप्त, सूक्ष्मनित्यनिगोद-अपर्याप्त, बादरचतुर्गतिनिगोद-अपर्याप्त और सूक्ष्मचतुर्गतिनगोद-अपर्याप्त ये चार जीवसमास, चार अपर्याप्तियां, तीन प्राण, चारों संज्ञाएं, तिथंचगति, एकेन्द्रियजाति, साधारणवनस्पतिकाय, औदारिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग ये दो योग, नपुंसकवेद, चारों कषाय, कुमति और कुश्रुत ये दो अज्ञान, असंयम, अचक्षुदर्शन, द्रव्यसे कापोत और शुक्ल लेश्याएं. भावसे कृष्ण, नील और कापोत लेश्याएं; भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक; मिथ्यात्व, असंशिक, आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
बादर साधारणवनस्पतिकायिक जीवोंके सामान्य आलाप कहने पर-एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, बादरनित्यनिगोद-पर्याप्त बादर नित्य निगोद-अपर्याप्त बदरचतुर्गतिनिगे.द-पर्याप्त
और बादरचतुर्गतिनिगोद-अपर्याप्त ये चार जीवसमास; चार पर्याप्तियां, चार अपर्याप्तियां चार प्राण, तीन प्राण; चारों संज्ञाएं, तिर्यंचगति, एकेन्द्रियजाति, बादरसाधारणवनस्पतिकाय, औदारिककाययोग, औदारिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग ये तीन योग नपुंसकवेद, चारों कषाय, कुमति और कुश्रुत ये दो अज्ञान, असंयम, अचक्षुदर्शन, द्रव्यसे
नं. २३० साधारण वनस्पतिकायिक जीवोंके अपर्याप्त आलाप. | गु. जी. प.प्रा.सं.) ग.| ई. का. यो. । वे. क. झा. । संय. द. ले. भ. | स 'संझि. आ. | उ. | १४ |४|३|४|११|१२ १/४ | २ | १ | १ द्र. २ २ || मि. अ. ति... औ.मि... कुम. असं. अच. का. म. मि. असं. आहा. साका. || BF कार्म. कुश्रु.
अना. अना.
२ ।
| म.मि. अ
भा.३
अशु.
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