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________________ ५९४] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, १. एकवीस जीवसमासा हवंति । पुढविकाइया दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता, आउकाइया दुविहा पजत्ता अपजत्ता, तेउकाइया दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता, वाउकाइया दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता, वणप्फइकाइया दुविहा पत्तेयसरीरा साधारणसरीरा, पत्तेयसरीरा दुविहा पजत्ता अपजत्ता, साधारणसरीरा दुविहा पजत्ता अपज्जत्ता, तसकाइया दुविहा सयलिंदिया वियलिंदिया चेदि, सयलिंदिया दुविहा पअत्ता अपज्जत्ता, वियलिंदिया दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता चेदि एवं सोलस जविसमासा हवंति । णिव्यत्तिपजत्तजीवसमासा अट्ट, णिव्यत्तिअपज्जत्तजीवसमासा वि अट्ट, अट्टण्हमपज्जत्तजीवसमासाणं मज्झे अट्ट लद्धिअपज्जत्तजीवसमासा हवंति एवं चउवीस जीवसमासा । पुढविकाइया दुविहा पज्जत्ता अपजत्ता, आउकाइया दुविहा पज्जत्ता अपजत्ता, तेउकाइया दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता, वाउकाइया दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता, वणप्फदिकाइया दुविहा पत्तेयसरीरा साधारणसरीरा, पत्तेयसरीरा दुविहा बादरणिगोदपडिट्ठिदा बादरणिगोदअपडिट्टिदा चेदि, वादरणिगोदपडिद्विदा दुविहा पज्जत्ता अपज्जत्ता, कायिक जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । अप्कायिक जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । तैजस्कायिक जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक। वायुकायिक जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक। वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकारके होते हैं, प्रत्येकशरीर और साधारणशरीर । प्रत्येकशरीर जीप दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक। साधारणशरीर जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक। त्रसकायिक जीव दो प्रकारके होते हैं, सकलेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय । सकलेन्द्रिय जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । विकलेन्द्रिय जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक इसप्रकार सोलह जीवसमास होते हैं। पृथिवीकायिक, अप्कायिक, तेजस्कायिक, वायुकायिक, प्रत्येकवनस्पतिकायिक, साधारणवनस्पतिकायिक, सकलेन्द्रिय और विकलेन्द्रिय जीवोंकी अपेक्षा आठ निर्वृत्तिपर्याप्तक जीवसमास, आठ निवृत्यपर्याप्तक जीवसमास और आठ अपर्याप्तक जीवसमासोंमें आठ लब्ध्यपर्याप्तक जीवसमास होते हैं। इसप्रकार सब मिलाकर चौबीस जीवसमास होते हैं। पृथिवीकायिक जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । जलकायिक जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक। अग्निकायिक जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । वायुकायिक जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक । वनस्पतिकायिक जीव दो प्रकारके होते हैं, प्रत्येकशरीर और साधारणशरीर । प्रत्येकशरीर जीव दो प्रकारके होते हैं, बादरनिगोदप्रतिष्ठित और बादरनिगोदअप्रतिष्ठित । बादरनिगोदप्रतिष्ठित जीव दो प्रकारके होते हैं, पर्याप्तक और अपर्याप्तक। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001396
Book TitleShatkhandagama Pustak 02
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1940
Total Pages568
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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