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________________ १, १.] संत-परूवणाणुयोगदारे इंदिय-आलाववण्णणं [५८९ संपहि पंचिंदियलद्धिअपजत्ताणं अपजत्त-णामकम्मोदयाणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणहाणं, दो जीवसमासा, छ अपजत्तीओ पंच अपजत्तीओ, सत्त पाण सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, मणुसगदि-तिरिक्खगदीओ त्ति दो गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, दो जोग, णबुंसयवेद, चत्तारि कसाय, दो अण्णाण, असंजमो, दो दंसण, दव्वेण काउसुक्कलेस्साओ, भावेण किण्ह-णील-काउलेस्साओ; भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, मिच्छत्तं, सण्णिणो असणिणो, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता होति अणागारुखजुत्ता वा। सणिपंचिदिय-लद्धिअपज्जत्ताणमपज्जत्त-णामकम्मोदयाणं भण्णमाणे अत्थि एयं गुणहाणं, एओ जीवसमासो, छ अपज्जत्तीओ, सत्त पाण, चत्तारि सण्णाओ, दो गदीओ, पंचिंदियजादी, तसकाओ, दो जोग, णबुंसयवेद, चत्तारि कसाय, दो अण्णाण, असंजमो, दो दसण, दत्रेण काउ-सुक्कलेस्सा, भावेण किण्ह-णील-काउलेस्साओ; भवसिद्धिया अपर्याप्त नामकर्मके उदयवाले पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक जीवोंके आलाप कहने पर-एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, संक्षी-अपर्याप्त और असंज्ञी-अपर्याप्त ये दो जीवसमास, छहों अपर्याप्तियां, पांच अपर्याप्तियां; सात प्राण, सात प्राण; चारों संज्ञाएं, मनुष्यगति और तिर्यंचगति ये दो गतियां, पंचेन्द्रियजाति, प्रसकाय, औदारिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग ये दो योगः नपुंसकवेद, चारों कषाय, कुमति और कुश्रुत ये दो अज्ञान, असंयम, चक्षु और अचक्षु ये दो दर्शन, द्रव्यसे कापोत और शुक्ल लेश्याएं, भावसे कृष्ण, नील और कापोत लेश्याएं; भव्यसिद्धिक, अभयसिद्धिका मिथ्यात्व, संक्षिक, असंशिका आहारक, अनाहारक; साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं। अपर्याप्त नामकर्मके उदयवाले संशी पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक जीवोंके आलाप कहने पर-एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, एक संजी-अपर्याप्त जीवसमास, छहों अपर्याप्तियां, सात प्राण, चारों संज्ञाएं, मनुष्यगति और तिर्यंचगति ये दो गतियां, पंचेन्द्रियजाति, सकाय, औदारिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग ये दो योग, नपुंसकवेद, चारों कषाय, कुमति और कुश्रुत ये दो अज्ञान, असंयम, चक्षु और अचक्षु ये दो दर्शन, द्रव्यसे कापोत और शुक्ल लेश्याएं, भावसे कृष्ण, नील और कापोत लेश्याएं; भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक मिथ्यात्व, नं. २१० पंचेन्द्रिय लब्ध्यपर्याप्तक जीवोंके आलाप. . | गु. जी. प. प्रा. सं. ग. ई. का. । यो. वे. क. ज्ञा. संय. द. ले.म.स.सनि. आ. उ. । १ २ ६अ ७ ४ २ ११२१४ २ २ द्र. २ २ २ २ २ मि. सं. अ.५ ७ म. पंचे. त्रस. औ.मि... कुम. असं. चक्षु. का. म. मि. सं. आहा. साका. असं. कार्म. कु. अच. शु. अ. असं. अना. अना. भा.३ | अशु. - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001396
Book TitleShatkhandagama Pustak 02
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1940
Total Pages568
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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