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________________ ५७० ] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, १. तेसिं चेव पज्जत्ताणं भण्णमाणे अस्थि एवं गुणहाणं, दो जीवसमासा, चत्तारि पजत्तीओ, चत्तारि पाण, चत्तारि सण्णाओ, तिरिक्खगदी, एइंदियजादी, पंच थावरकाय, ओरालियकायजोगो, णqसयवेद, चत्तारि कसाय, दो अण्णाण, असंजम, अचक्खुदंसण, दव्वेण छ लेस्सा, भावेण किण्ह-णील-काउलेस्साओ, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, मिच्छत्तं, असण्णिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होति अणागारुवजुत्ता वा। तेसिं चेव अपज्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणट्ठाणं, दो जीवसमासा, चत्तारि अपजत्तीओ, तिण्णि पाण, चत्तारि सण्णा, तिरिक्खगदी, एइंदियजादी, पंच थावरकाय, दो जोग, णबुंदसयवेद, चत्तारि कसाय, दो अण्णाण, असंजम, अचक्खुदंसण, दव्येण काउ-सुक्कलेस्सा, भावेण किण्ह-णील काउलेस्सा, भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, मिच्छत्तं, उन्हीं सामान्य एकेन्द्रिय जीवोंके पर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर-एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, बादर-पर्याप्त और सूक्ष्म-पर्याप्त ये दो जीवसमास, चार पर्याप्तियां, चार प्राण, चारों संज्ञाएं, तिर्यंचगति, एकेन्द्रियजाति, पांचों स्थावरकाय, औदारिककाययोग, नपुंसकवेद, चारों कषाय, कुमति और कुश्रुत ये दो अज्ञान, असंयम, अचक्षुदर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावसे कृष्ण, नील और कापोत लेश्याएं; भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिका मिथ्यात्व, असंक्षिक, आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं। उन्हीं सामान्य एकेन्द्रिय जीवोंके अपर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर-एक मिथ्यादृष्टि गुणस्थान, बादर-अपर्याप्त और सूक्ष्म-अपर्याप्त ये दो जीवसमास, चार अपर्याप्तियां, तीन प्राण, चारों संज्ञाएं, तिर्यंचगति, एकेन्द्रियजाति, पांचों स्थावरकाय, औदारिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग ये दो योग, नपुंसकवेद, चारों कषाय, कुमति और कुश्रुत ये दो अज्ञान, असंयम, अचक्षुदर्शन, द्रव्यसे कापोत और शुक्ल लेश्याएं, भावसे कृष्ण, नील और कापोत लेश्याएं; भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक; मिथ्यात्व, असंक्षिक, नं. १८४ सामान्य एकेन्द्रियोंके पर्याप्त आलाप. । गु. जी. प. प्रा. सं. | ग.| इं. का. यो. वे. क. ज्ञा. संय. द. ले. भ. स. संहि. आ. उ. | | २ २ ४ ४ ४ | १|१ ५ १ १/४ २११ द्र.६ २११/१ २ मि. बा.प.प. ति.. स. औदा... कुम. असं. अच. भा.३ म. मि. असं. आहा. साका. कुश्रु. अशु. अ. अना. एके. . विना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001396
Book TitleShatkhandagama Pustak 02
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1940
Total Pages568
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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