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५४८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं
[१, १. तेसिं चेव पज्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि एयं गुणहाणं, एओ जीवसमासो, छ पज्जत्तीओ, दस पाण, चत्तारि सण्णा, देवगदी, पंचिंदियजादी, तसकाओ, णव जोग, दो वेद, चत्तारि कसाय, तिणि अण्णाण, असंजमो, दो दंसण, दवेण छ लेस्साओ, भावेण जहणिया तेउलेस्सा; भवसिद्धिया, सासणसम्मत्तं, सण्णिणो, आहारिणो, सागारुवजुत्ता होति अणागारुवजुत्ता वा।
तेसिं चेव अपज्जत्ताणं भण्णमाणे अत्थि एयं गुणहाणं, एओ जीवसमासो, छ अपजत्तीओ, सत्त पाण, चत्तारि सण्णा, देवगदी, पंचिंदियजादी, तसकाओ, दो जोग, दो वेद, चत्तारि कसाय, दो अण्णाण, असंजम, दो दंसण, दव्वेण काउ-सुक्कलेस्सा, भावेण किण्ह-णील-काउलेस्सा; भवसिद्धिया, सासणसम्मत्तं, सणिणो, आहारिणो अणा
उन्हीं सासादनसम्यग्दृष्टि भवनत्रिक देवोंके पर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने परएक सासादन गुणस्थान, एक संज्ञी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, चारों संज्ञाएं, देवगति, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग और वैक्रियिककाययोग ये नौ योग; नपुंसकवेदके विना दो वेद, चारों कषाय, तीनों अज्ञान, असंयम, चक्षु और अचक्षु ये दो दर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावसे जघन्य तेजोलेश्या; भव्यसिद्धिक, सासादनसम्यक्त्व, संक्षिक, आहारक, साकारोपयोगी और अनाकारोपयोगी होते हैं।
उन्हीं सासादनसम्यग्दृष्टि भवनत्रिक देवोंके अपर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने परएक सासादन गुणस्थान, एक संज्ञी-अपर्याप्त जीवसमास, छहों अपर्याप्तियां, सात प्राण, चारों संक्षाएं, देवगति, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, वैक्रियिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग ये दो योग, नपुंसकवेदके विना दो वेद, चारों कषाय, कुमति और कुश्रुत ये दो अज्ञान, असंयम, चक्षु और अचक्षु ये दो दर्शन, द्रव्यसे कापोत और शुक्ललेश्याएं, भावसे कृष्ण, नील और कापोत लेश्याएं; भव्यसिद्धिक, सासादनसम्यक्त्व, संक्षिक, आहारक, अनाहारक;
नं. १६० भवनत्रिक सासादनसम्यग्दृष्टि देवोंके पर्याप्त आलाप. | गु. जी. प.प्रा. सं. ग. ई. का. यो. वे. क. ज्ञा. संय. द. ले. भ. स. संज्ञि.
आ. |
उ. |
पंचे. ..
सं.प. प.
द.
सासा.
स. म. ४ स्त्री.
व.४ पु.
अज्ञा असं चक्षु. भा.१ भ. सासा. सं.
अच, तेज.
आहा. साका.
अना.
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