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________________ ५२८] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, १. सण्णिणीओ, आहारिणीओ, सागारुवजुत्ताओ होंति अणागारुखजुत्ताओ वा। मणुसिणीसु उवसंतकसायाणं भण्णमाणे अत्थि एवं गुणहाणं, एओ जीवसमासो, छ पज्जत्तीओ, दस पाण, उवसंतसण्णा, मणुसगदी, पंचिंदियजादी, तसकाओ, णव जोग, अवगदवेदो, उवसंतकसाओ, तिण्णि णाण, जहाक्खादविहारसुद्धिसंजमो, तिण्णि दसण, दव्येण छ लेस्साओ, भावेण सुक्कलेस्सा; भवसिद्धियाओ, दो सम्मत्तं, सणिणीओ, आहारिणीओ, सागारुवजुत्ताओ होंति अणागारुवजुत्ताओ वा । मणुसिणीसु खीणकसायाण भण्णमाणे अत्थि एवं गुणहाणं, एओ जीवसमासो, छ पज्जत्तीओ, दस पाण, खीणसण्णा, मणुसगदी, पंचिंदियजादी, तसकाओ, णव जोग, अवगदवेदो, खीणकसाओ, तिणि णाण, जहाक्खादविहारसुद्धिसंजमो, तिण्णि दसण, सिद्धिक, औपशमिक और क्षायिक ये दो सम्यक्त्व, संझिनी, आहारिणी, साकारोपयो गिनी और अनाकारोपयोगिनी होती हैं। उपशान्तकषाय गुणस्थानवर्तिनो मनुष्यनियोंके आलाप कहने पर-एक उपशान्तकषाय गुणस्थान, एक संझी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, उपशान्तसंज्ञा, मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, सकाय, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग और औदारिककाययोग ये नौ योग, अपगतवेद, उपशान्तकषाय, आदिके तीन ज्ञान, यथाख्यातविहारशुद्धिसंयम, आदिके तीन दर्शन, द्रव्यसे छहों लेश्याएं, भावसे शुक्ललेश्या; भव्यसिद्धिक, औपशमिक और क्षायिक ये दो सम्यक्त्व, संशिनी, आहारिणी, साकारोपयोगिनी और अनाकारोपयोगिनी होती हैं। क्षीणकषाय गुणस्थानवर्तिनी मनुष्यनियों के आलाप कहने पर-एक क्षीणकषाय गुणस्थान, एक संझी-पर्याप्त जीवसमास, छहों पर्याप्तियां, दशों प्राण, क्षीणसंज्ञा, मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, बसकाय, चारों मनोयोग, चारों वचनयोग और औदारिककाययोग ये नौ योग, अपगतवेद, क्षीणकषाय, आदिके तीन शान, यथाख्यातविहारशुद्धिसंयम, आदिके नं. १३५ उपशान्तकषाय गुणस्थानवर्तिनी मनुष्यनियोंके आलाप.. | गु.| जी. प.प्रा. सं. ग. इं. का. यो. वे. क. ज्ञा. संय. द. | ले. भ. स. | संज्ञि. | आ. | उ..। उ. म. स - उ. मति. यथा के.द भा.१ भ. औप सं. आहा. साका. श्रुत. विना. शु. अना. अव. - ' सं.प. पचे. . अपग. ० से Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001396
Book TitleShatkhandagama Pustak 02
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1940
Total Pages568
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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