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________________ ५०४] छक्खंडागमे जीवट्ठाणं [१, १. तेसिं चेव अपजत्ताण भण्णमाणे आत्थि पंच गुणट्ठाणाणि, एओ जीवसमासो, छ अपज्जत्तीओ, सत्त पाण, चत्तारि सण्याओ अदीदसण्णा वि अस्थि, मणुसगदी, पंचिंदियजादी, तसकाओ, आहारमिस्सेण सह तिण्णि जोग, तिणि वेद अवगदवेदो वि अस्थि, चत्तारि कसाय अकसाओ वा, पंच णाण केवलणाणेण छ णाण, असंजम सामाइयछेदोवट्ठावण-जहाक्खादेहि चत्तारि संजम, चत्तारि दंसण, दव्येण काउ-सुक्कलेस्सा, भावेण छ लेस्साओ; भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, सम्मामिच्छत्त-उवसमसम्मत्तेण विणा चत्तारि सम्मत्तं, सणिणो अणुभओ वा, आहारिणो अणाहारिणो, सागावजुत्ता हेति अणागारुवजुत्ता वा तदुभया वा । उन्हीं सामान्य मनुष्योंके अपर्याप्तकालसंबन्धी आलाप कहने पर-मिथ्यादृष्टि, सासादनसम्यग्दृष्टि, अविरतसम्यग्दृष्टि, प्रमत्तसंयत और सयोगिकेवली ये पांच गुणस्थान, एक संझी-अपर्याप्त जीवसमास, छहों अपर्याप्तियां, सात प्राण, चारों संज्ञाएं तथा अतीतसंज्ञा स्थान भी है। मनुष्यगति, पंचेन्द्रियजाति, त्रसकाय, आहारमिश्रकाययोगके साथ औदारिकमिश्रकाययोग और कार्मणकाययोग इसप्रकार तीन योग, तीनों वेद तथा अपगतवेद-स्थान भी है, चारों कषाय तथा अकषाय स्थान भी है, कुमति, कुश्रुत तथा आदिके तीन ज्ञान ये पांच ज्ञान और केवलज्ञान इसप्रकार छह ज्ञान, असंयम, सामायिक, छेदोपस्थापना और यथाख्यात ये चार संयम; चारों दर्शन, द्रव्यसे कापोत और शुक्ल लेश्याएं, भावसे छहों लेश्याएं; भव्यसिद्धिक, अभव्यसिद्धिक सम्यग्मिथ्यात्व और उपशमसम्यक्त्वके विना चार सम्यक्त्व, संक्षिक, और अनुभय अर्थात् संक्षिक और असंज्ञिक इन दोनों विकल्पोंसे रहित स्थान, आहारक, अनाहारका साकारोपयोगी, अनाकारोपयोगी तथा दोनों उपयोगोंसे युगपत् उपयुक्त होते हैं। नं. १०२ सामान्य मनुष्योंके अपर्याप्त आलाप. । गु. जी. । प. | प्रा. सं. ग. ई. का. यो. वे. क. ज्ञा. संय. द. | ले. भ. | स. संक्षि. मि. सं.अ.. म. पं. स. औ.मि. विभं. असं. का. भ. मि. सं. आहा. साका. आ.मि. मनः सामा. अ.सा. अनु. अना. अना. कार्म. विना. छेदो.। क्षा. यु.उ. यथा.. क्षायो. क्षीणसं. २ अपग. - अकषा.. भा.६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001396
Book TitleShatkhandagama Pustak 02
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1940
Total Pages568
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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