________________
१, १.] संत-परूवणाणुयोगद्दारे ओघालाववण्णणं
[४२३ देवाणमपज्जत्तकाले तेउ-पम्म-सुक्कलेस्साओ भवंति । भवसिद्धिया अभवसिद्धिया, सम्मामिच्छत्तेण विणा पंच सम्मत्ताणि, सणिणो असणिणो अणुभया वा, आहारिणो अणाहारिणो, सागारुवजुत्ता अणागारुवजुत्ता वा तदुभएण जुगवदुवजुत्ता वि अत्थि।
___ संपहि मिच्छाइट्टीणं ओघालावे भण्णमाणे अत्थि एयं गुणहाणं, चोद्दस जीवसमासा, छ पजत्तीओ छ अपज्जत्तीओ पंच पज्जत्तीओ पंच अपज्जत्तीओ चत्तारि पज्जत्तीओ चत्तारि अपज्जत्तीओ, दस पाण सत्त पाण णव पाण सत्त पाण अझ पाण छ पाण सत्त पाण पंच पाण छप्पाण चत्तारि पाण चत्तारि पाण तिष्णि पाण, चत्तारि सण्णाओ, चत्तारि गदीओ, एइंदियजादि-आदी पंच जादीओ, पुढवीकायादी छक्काया, आहार-दुगेण विणा तेरह जोग, तिणि वेद, चत्तारि कसाय, तिणि अण्णाण,
शुक्ल लेश्याएं होती हैं ऐसा जानना चाहिये। भव्यसिद्धिक होते हैं और अभव्यसिद्धिक भी होते हैं। सम्यग्मिथ्यात्वके धिना पांच सम्यक्त्व होते हैं। संक्षी होते हैं, असंही होते हैं और संशी, असंही इन दोनों विकल्पोंसे रहित भी होते हैं। आहारक होते हैं और अनाहारक भी होते हैं। साकार उपयोगवाले होते हैं, अनाकार उपयोगवाले होते हैं और युगपत् उन दोनों उपयोगोंसे युक्त भी होते हैं।
__ अब मिथ्यादृष्टि जीवोंके ओघालाप कहने पर-एक मिथ्यात्व गुणस्थान, चौदहों जीवसमास, संक्षीके छहों पर्याप्तियां, छहों अपर्याप्तियांः असंशी और विकलत्रयों के पांच पर्याप्तियां. पांच अपर्याप्तियां: एकेन्द्रियोंके चार पर्याप्तियां चार अपर्याप्तियां: संज्ञीके दश प्राण, सात प्राणः असंज्ञीके नौ प्राण, सात प्राणः चतरिन्द्रियके आठ प्राण, छह प्राणा त्रीन्द्रियके सात प्राण, पांच प्राणः द्वीन्द्रियके छह प्राण, चार प्राण; एकेन्द्रियके चार प्राण, तीन प्राण; चारों संज्ञाएं, चारों गतियां, एकेन्द्रियजातिको आदि लेकर पाचों जातियां, पृथिवीकायको आदि लेकर छहों काय, आहारकद्विक अर्थात् आहारककाययोग और आहारकमिश्रकाययोगके विना तेरह योग, तीनों वेद, चारों कषायें, तीनों अज्ञान, असंयम, चक्षु और अचक्षु ये दो दर्शन,
नं.२
गु. जी. ५ । ७६ मि. अप.
अपर्याप्त जीवोंके सामान्य-आलाप. प. | प्रा. | सं. ग.ई. का. यो. ने.क. । ज्ञा. संय. द. ले. भ. | स.सांझ. आ.| उ. । अप. ७ ।४|४|५|६ ४ ३|४| ६ | ४ | ४ द. २२ ५ २ | २ २ ।
| औ. मि. मनः. सामा. का. म. सं. आहा. साका.
वै. ,, विभं. छे. शु. अ. असं. अना. अना.. आ." विना यथा. भा
यु-उ. कार्म.,
अ. सं. .
अक.
सा.
the
अवि.
सम्य. विना.
wrxm
असं.
सयो.
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org