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________________ ११८] छक्खंडागमे जीवहाणं [१, १. एदे दस पाणा पंचिंदिय-सण्णिपज्जत्ताणं । आणापाण-भासा-मणेहि विणा सण्णिपंचिंदिय-अपज्जत्ताणं सत्त पाणा भवंति । दसण्हं पाणाणं मज्झे मणेण विणा गव पाणा असण्णि-पंचिंदिय-पजत्ताणं भवंति । एदेसिं चेव अपजत्ताणं भासा-आणापाणपाणेहि विणा सत्त पाणा भवंति । पुबिल्ल-णव-पाणेसु सोदिदिय-पाणे अवणिदे चदुरिंदियपञ्जत्तस्स अट्ठ पाणा भवंति । एदेसिं चेव चदुरिंदिय-अपज्जत्ताणं आणावाण-भासाहि विणा छप्पाणा भवति । पुब्धिल-अट्ठण्डं पाणाणं मज्झे चक्खिदिए अवणिदे तीइंदिय-पज्जत्तयस्स सत्त पाणा भवंति । तेसु सत्तम आणावाण-भासापाणे अवणिदे तीइंदिय-अपज्जत्तयस्स पंच पाणा भवंति । तीइंदियस्स वुत्त-सत्तण्हं पाणाणं मज्झे घाणिदिए अवणिदे बीइंदियपज्जत्तयस्स छप्पाणा भवंति । तेसु छसु आणावाण-भासाहि विणा बीइंदिय-अपज्जत्तयस्स चत्तारि पाणा भवंति । बीइंदिय-पज्जत्तयस्त वुत्त-छण्हं पाणाणं मज्झे जिभिदियपाणे भासापाणे अवणिदे एइंदिय-पज्जत्तयस्स चत्तारि पाणा भवंति । तेसु आणावाणपाणे अवणिदे एइंदिय अपज्जत्तयस्स तिण्णि पाणा भवंति' । उत्तं च दस सण्णीणं पाणा सेसेगूणंतिमस्स वे ऊणा। पज्जत्तेसिदरेसु य सत्त दुगे सेसगेगूणा ॥ २२१ ॥ पूर्वोक्त दश प्राण पंचेन्द्रिय संज्ञी-पर्याप्तकोंके होते हैं। आनापान, वचनबल और मनोबल इन तीन प्राणोंके विना शेष सात प्राण संशी-पंचेन्द्रिय-अपर्याप्तकों के होते हैं । दश प्राणों से मनोबलके विना शेष नौ प्राण असंही-पंचेन्द्रिय-पर्याप्तकोंके होते हैं। अवस्थाको प्राप्त इन्हीं जीवोंके वचनबल और आनापान प्राणके विना शेष सात प्राण होते हैं। पूर्वोक्त नौ प्राणोंमेंसे श्रोत्रेन्द्रिय प्राणको कम कर देने पर शेष आठ प्राण चतुरिन्द्रिय पर्याप्त जीवोंके होते हैं । इन्हीं चतुरिन्द्रिय अपर्याप्त जीवोंके आनापान और वचनबलके विना शेष छह प्राण होते हैं । पूर्वोक्त आठ प्राणोंमेंसे चक्षु इन्द्रियके कम कर देने पर शेष सात प्राण त्रीन्द्रिय पर्याप्त जीवोंके होते हैं । उन सात प्राणोंमेंसे आनापान और वचनबल प्राणके कम कर देने पर शेष पांच प्राण त्रीन्द्रिय-अपर्याप्तकोंके होते हैं। त्रीन्द्रिय जीवोंके कहे गये सात प्राणों मेंसे घ्राणेन्द्रियके कम कर देने पर शेष छह प्राण द्वीन्द्रिय पर्याप्तकोंके होते हैं। उन छह प्राणों से आनापान और वचनबलके कम कर देने पर शेष चार प्राण द्वीन्द्रिय-अपर्याप्तकोंके होते हैं। द्वीन्द्रिय-पर्याप्तकोंके कहे गये छह प्राणोंमेंसे रसनेन्द्रिय-प्राण और वचनबलप्राणके कम कर देने पर शेष चार प्राण एकेन्द्रिय-पर्याप्तकोंके होते हैं। उनमेंसे आनापान प्राणके कम कर देने पर शेष तीन प्राण एकेन्द्रिय-अपर्याप्तकोंके होते हैं। कहा भी है संझी जीवोंके दश प्राण होते हैं। शेष जीवोंके एक एक प्राण कम करना चाहिये। १ इंदियकायाऊणि य पुण्णापुण्णेसु पुण्णगे आणा। वीइंदियादिपुणे वचीमणो सण्णिपुण्णेव गो.जी. १३२. २ गो. जी. १३३. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001396
Book TitleShatkhandagama Pustak 02
Original Sutra AuthorPushpadant, Bhutbali
AuthorHiralal Jain, Fulchandra Jain Shastri, Devkinandan, A N Upadhye
PublisherJain Sahityoddharak Fund Karyalay Amravati
Publication Year1940
Total Pages568
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & Karma
File Size12 MB
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