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________________ महाबंध पदे सबंधाहियारे । पयलापयला उक्क० पदे ० विसे० । णिद्दाणिद्दाए' उक्क० पदे विसे० । श्रीणगिद्धि ० उक्क० पदे० विसे० | केवलदं० उक्क० पदे० विसे० । ओधिदं० उक्क० पदे० अनंतगुणं । अचक्खुर्द • उक्क० पदे० विसे० । चक्खुदं० उक्क० पदे० विसे० । ० ६६. सव्वत्थोवा असाद० उक० पदे० । साद० उक० पदे० विसे० । ६६ ६७. सव्वत्थोवा अपच्चक्खाणमाणे उक्क० पदे० । कोधे० उक० पदे० विसे० । माया० उक्क० पदे० विसे० । लोभे० उक्क० पदे० विसे । पञ्चक्खाणमाणे उक्क० पदे० विसे० | कोधे० उक्क० पदे० विसे० । माया० उक्क० पदे० विसे० । लोभे० उक्क० पदे० विसे० । अणंताणु०माणे० उक्क० पदे० विसे० । कोधे० उक्क० पदे० विसे० । माया० उक्क० पदे० विसे० । लोभे० उक्क० पदे० विसे० । मिच्छ० उक्क० पदे० विसे० । दुगुं० उक्क० पदे० अणंतगु० । भय० उक० पदे० विसे० । हस्स - सोगे उक्क० पदे ० विसे० । रदि० -अरदि उक्क० पदे० विसे० । इत्थि० - णवुंस० उक्क० पदे० 'विसे० । कोधसंज० उक्क० पदे० संखेजगुणं० । माणसंज० उक० पदे० विसे० । पुरिस० उक० पदे० विसे० । माया० उक्क० पदे० विसे० । लोभसंज० उक० पदे० संखेंज्जगु० । अधिक है । उससे प्रचलाप्रचलाका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है। उससे निद्रानिद्राका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है। उससे स्त्यानगृद्धिका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है। उससे केवलदर्शनावरणका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है। उससे अवधिदर्शनावरणका उत्कृष्ट प्रदेशा अनन्तगुणा है। उससे अचक्षुदर्शनावरणका उत्कृष्ट प्रदेशाय विशेष अधिक है। उससे क्षुदर्शनावरणका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है । ६६. असातावेदनीयका उत्कृष्ट प्रदेशाय सबसे स्तोक है । उससे सातावेदनीयका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है । ६७. अप्रत्याख्यानावरणमानका उत्कृष्ट प्रदेशाय सबसे स्तोक है। उससे अप्रत्याख्यानावरणक्रोधका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है । उससे अप्रत्याख्यानावरणमायाका उत्कृष्ट प्रदेशा विशेष अधिक है। उससे अप्रत्याख्यानावरण लोभका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है । उससे प्रत्याख्यानावरणमानको उत्कृष्ट प्रदेशात्र विशेष अधिक है। उससे प्रत्याख्यानावरण क्रोधका उत्कृष्ट प्रदेशाय विशेष अधिक है । उससे प्रत्याख्यानावरणमायाका उत्कृष्ट प्रदेशान विशेष अधिक है। उससे प्रत्याख्यानावरणलोभका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है। उससे अनन्तानुबन्धी मानका उत्कृष्ट प्रदेशाय विशेष अधिक है। उससे अनन्तानुबन्धी क्रोधका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है। उससे अनन्तानुबन्धी मायाका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है । उससे अनन्तानुबन्धी लोभका उत्कृष्ट प्रदेशाय विशेष अधिक है । उससे मिथ्यात्वका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है। उससे जुगुप्साका उत्कृष्ट प्रदेशाग्र अनन्तगुणा है। उससे भयका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है। उससे हास्य-शोकका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है। उससे रति-अरतिका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है। उससे स्त्रीवेद-नपुंसकवेदका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है। उससे क्रोधसंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशाम संख्यातगुणा है। उससे मानसंज्वलनका उत्कृष्ट प्रदेशाम विशेष अधिक है । उससे पुरुषवेदका उत्कृष्ट प्रदेशांम विशेष अधिक १ आ० प्रतौ 'विसे० । णिद्दाए' इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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