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________________ महाबंधे पबंधाहियारे २६. बुंसगे ० पंचणा० - थीण गिडि ०३ - दोवेद ० - मिच्छ० - अनंताणु०४ कहा है वहाँ देवोंके स्वस्थान बिहारको मुख्यतासे जानना चाहिए । अन्य स्पर्शन इसी में गर्भित हो जाता है । जहाँ सर्व लोकप्रमाण स्पर्शन कहा है वहाँ एकेन्द्रियों में मारणान्तिक समुद्रात कराकर यह प्राप्त किया गया है। कहीं उपपादपदकी अपेक्षा भी यह स्पर्शन प्राप्त हो सकता है सां विचार कर लगा लेना चाहिए । जहाँ पूर्वोक्त दोनों प्रकारका स्पर्शन कहा है, वहाँ इन दोनों विवक्षाओंको ध्यान में रखकर वह ले आना चाहिए। त्रसनाली के कुछ कम छह घंटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन देवों में और नारकियों में मारणान्तिक समुद्धात करानेसे प्राप्त होता है सो स्वामित्वको देखकर जहाँ जो सम्भव हो वहाँ वह घटित कर लेना चाहिए। पुरुपवेद आदिका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहनेका कारण यह है कि पुरुपका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध तो अनिवृत्तिकरण में होता है तथा मनुष्यगति आदिका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध नामकर्मकी पच्चीस प्रकृतियोंका बन्ध करनेवाले संज्ञी मिध्यादृष्टि तिर्यञ्च और मनुष्य गतिके जीव करते हैं। दो आयु आदि आठ प्रकृतियोंके दोनों पवालोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है, यह पहले अनेक बार स्पष्ट कर आये हैं । तिर्यञ्चगति आदि इक्कीस प्रकृतियोंका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध नामकर्मकी तेईस प्रकृतियों का बन्ध करनेवाले दो गतिके संज्ञी मिथ्यादृष्टि जीव स्वस्थानमें और एकन्द्रियों में मारणान्तिक समुद्रातके समय इन दोनों अवस्थाओं में करते हैं, इसलिए इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका लोकके असंख्यातत्रं भागप्रमाण और सर्व लोकप्रमाण स्पर्शन कहा है । पञ्चेन्द्रियजाति और त्रसके उत्कृष्ट प्रदेशबन्धका स्वामी मनुष्यगतिके ही समान हैं, इसलिए इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। तथा इन दोनों प्रकृतियोंका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध देवोंके बिहारवत्स्वस्थानके समय और नारकियों व देवोंमें मारणान्तिक समुद्रात करते समय भी सम्भव है, इसलिए इनका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवों का स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम बारह घंटे चौदह भागप्रमाण कहा हैं | नारकियों और देवोंमें मारणान्तिक समुद्रात करते समय वैक्रियिकद्धिक के दोनों पद सम्भव हैं, इसलिए इनके दोनों पवालोंका त्रसनालीके कुछ कम बारह घंटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन कहा है । देवोंमें मारणान्तिक समुद्रात करते समय भी मनुष्य और तिर्यञ्ज समचतुरस्त्रसंस्थान आदिका और नारकियों में मारणान्तिक समुद्धात करते समय अप्रशस्त विहायांगति और दुःस्वरका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध सम्भव है, इसलिए इनका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका त्रसनालीके कुछ कम छह बढे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन कहा है। सूक्ष्म आदि तीन प्रकृतियोंका दोनों प्रकारका प्रदेशबन्ध तिर्यञ्च और मनुष्योंके स्वस्थान में व एकेन्द्रियों में मारणान्तिक समुहात के समय सम्भव है, इसलिए इनके दोनों पशंका लोकके असंख्यातवें भाग और सर्व लोकप्रमाण स्पर्शन कहा है । स्त्रीवेदियों में शेप जिस स्पर्शनका यहाँ स्पष्टीकरण नहीं किया है उसका पहले अनेकवार स्पष्टीकरण कर आये हैं, इसलिए उसे वहाँ से जान लेना चाहिए | यशःकीर्तिके उत्कृष्ट पदवालोंका स्पर्शन ओघके समान है यह स्पष्ट ही है। तथा देवियों के बिहार के समय और एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्घातके समय भी इसका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध सम्भव है, इसलिए इसके इस पदवाले जीवोंका त्रसनाली के कुछ कम आठ और कुछ कम नौ बट चौदह भागप्रमाण स्पर्शन कहा है । पुरुषवेदी जीवों में यह स्पर्शन अविकल घटित हो जाता है इसलिए उनमें स्त्रीवेदी जीवोंके समान जाननेकी सूचना की है। मात्र देवों में तीर्थङ्कर प्रकृतिका भी बन्ध होता है, इसलिए पुरुषवेदियों में इसका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवालोंका स्पर्शन त्रसनालीके कुछ कम आठ बटे चौदह भागप्रमाण बन जानेसे इसकी अलग से सूचना की है। २६. नपुंसक वेदी जीवों में पाँच ज्ञानावरण, स्त्यानगृद्धित्रिक, दो वेदनीय, मिथ्यात्व अनन्तानुबन्धचतुष्क, तिर्यञ्चगति संयुक्त प्रकृतियाँ, नीचगोत्र और पांच अन्तरायका उत्कृष्ट ३० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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