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________________ २३ फोसणपरूवणा २०. ओरालि. पंचणाणावरणदंडओ ओघं । थीणगिद्धि०३-असादा०-मिच्छ०अणंताणु०४-णस० उक्क० लोगस्स असंखें सव्वलो० । अणु० सव्वलो० । णिद्दापयला-अपचक्खाण०४-छण्णोक० उक्क० छच्चों । अणु० सव्वलो० । एवं पञ्चक्खाण०४[समचदु०-सुभग दोसर-आर्दै० ] । इथि उक० दिवड्डचौदस० । अणु० सव्वलो० । पुरिस-तिरिक्खाउ०-मणुस०-चदुजादि-चदुसंठा०-ओरालि अंगो०-छस्संघ०-मणुसाणु०आदाव०-दोविहा०-तस-बादर० उक्क०. खेत्तभंगो । अणु० सव्वलो० | दोगदि-दोआणु० उक्क० अणु० छच्चों० । तिरिक्ख०-एइंदि०-ओरालि०-तेजा०-क०-हुंड ०-वण्ण० ४-तिरिमारणान्तिक समुद्रातके समय भी सम्भव होनेसे इस अपेक्षासे त्रसनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम बारह बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन कहा है । देवोंके विहारवत्स्वस्थानके समय और देवांके एकेन्द्रियोंमें मारणान्तिक समुद्भात करते समय उद्योतका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध सम्भव है, इसलिए इस अपेक्षासे त्रसनालोके कुछ कम आठ और कुछ कम नौ बटे चौदह भागप्रमाण म्पर्शन कहा है । तथा देवोंके बिहारवत्स्वस्थानके समय और वैक्रियिककाययोगी जीवोंके मारणान्तिक समुद्रातके समय इसका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध भी सम्भव है, इसलिए इस अपेक्षासे वसनालीके कुछ कम आठ और कुछ कम तेरह बटे चौदह भागप्रमाण स्पर्शन कहा है। बादरप्रकृतिका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन उद्योतके अनुत्कृष्टके समान ही घटित कर लेना चाहिए। तथा इसका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है. यह स्पष्ट ही है। सूक्ष्म आदिका भङ्ग पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्चोंके समान है, यह भी स्पष्ट है। चक्षुदर्शनवाले और संज्ञी जीवोंमें उक्त प्रकारसे स्पर्शन घटित हो जानेसे वह उक्त प्रमाण कहा है। तथा काययोग एकेन्द्रियादि सब जीवोंके सम्भव होनेसे इसमें ओघप्ररूपणा अविकल घटित हो जाती है, अतः ओघके समान जाननेकी सूचना की है। २०. औदारिककाययोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरणदण्डकका भङ्ग ओघके समान है । स्त्यानगद्धित्रिक, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धीचतुष्क और नपुंसकवेदका उ बन्ध करनेवाले जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा इनका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका सर्शन किया है । निद्रा, प्रचला, अप्रत्याख्यानावरणचतुष्क और छह नोकषायका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने बसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । तथा इनका अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार प्रत्याख्यानावरण चतुष्क, समचतुरस्रसंस्थान, सुभग, दो स्वर और आदेयकी अपेक्षा स्पर्शन जानना चाहिए । स्त्रीवेदका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने त्रसनालीके कुछ कम डेढ़ बटे चौदह भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तथा अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। पुरुषवेद, तिर्यञ्चायु, मनुष्यगति, चार जाति, चार संस्थान, औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, आतप, दो विहायोगति, त्रस और बादरका उत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। तथा अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने सर्व लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो गति और दो आनुपूर्वीका उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट प्रदेशबन्ध करनेवाले जीवोंने बसनालीके कुछ कम छह बटे चौदह भागप्रप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। तियश्चगति, एकेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, हुण्डसंस्थान, वर्णचतुष्क, तिर्यश्च १ ता० आ० प्रत्योः 'पञ्चक्खाण. ४ इथि०' इति पाठः । देश Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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