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________________ ३१८ महाबंधे पदेसबंधाहियारे णीललेस्सिय-काउलेस्मियाणं । णवरि किण्ण-णीलाणं तित्थयरं इत्थिभंगो। चक्खुदंसणी० तसपज्जत्तभंगो । अचक्खुदंसणी० ओघं । ___३५६. तेउ-पम्मासु छदसणावरणीयाणं बारहकसायं सत्तणोकसायं सव्वत्थोवा उक्कस्सपदेसबंधगा जीवा । जहण्णपदेसबंधगा जीवा असंखेंजगुणा । अजहण्णमणुक्कस्सपदेसबंधगा जीवा असंखेंजगुणा । मणुसाउगं देवभंगो । देवाउगं ओधिभंगो । सेसाणं सव्वत्थोवा जहण्णपदेसबंधगा जीवा । उक्कस्सपदेसबंधगा जीवा असंखेंजगुणा । अजहण्णमणुकस्सपदेसंबंधगा जीवा असंखेंजगुणा।। . ३५७. सुक्काए पंचणाणावरणीयाणं चदुदंस० सादा० चदुसंजल० पुरिस० जसगित्ति उच्चागोद पंचण्णं अंतराइगाणं च सव्वत्थोवा उकस्सपदेसबंधगा जीवा । जहण्णपदेसबंधगा जीवा असंखेंजगुणा। अजहण्णमणुकस्सपदेसबंधगा जीवा असंखेंजगुणा । दोआउ० देवभंगो। सेसाणं सव्वत्थोवा जहण्णपदेसबंधगा जीवा । उकस्सपदेसवंधगा जीवा असंखेंजगुणा । अजहण्णमणुक्कस्सपदेसबंधगा जीवा असंखेंजगुणा । ३५८. भवसिद्धिया० ओघं । अभवसि०-मिच्छादि०-असण्णि० मदिभंगो। वेदगसम्मादिट्ठी० सव्वपगदीणं सव्वत्थोवा जहण्णपदेसबंधगा जीवा। उकस्सपदेस तिर्यञ्चोंके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग ओघके समान है। इसी प्रकार अर्थात असंयत जीवोंके समान कृष्णलेश्यावाले, नीललेश्यावाले और कापोत लेश्यावाले जीवों में जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि कृष्ण और नील लेश्यावाले जीवों में तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग स्त्रीवेदी जीवोंके समान है। चक्षुदर्शनवाले जीवोंमें त्रस पर्याप्त जीवोंके समान भङ्ग है । अचक्षुदर्शनवाले जीवों में ओघके समान भङ्ग है। ३५६. पीत और पद्मलेश्यावाले जीवोंमें छह दर्शनावरणीय, बारह कषाय और सात नोकषायोंके उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। मनुष्यायुका भङ्ग देवोंके समान है। देवायुका भङ्ग अवधिज्ञानी जीवोंके समान है। शेष प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। ३५७. शुक्ललेश्यावाले जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, सातावेदनीय, चार संज्वलन, पुरुपवेद, यशःकीर्ति, उच्चगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशों के बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। दो आयुओंका भङ्ग देवोंके समान है। शेष प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशोंके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। उनसे उत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुण हैं। उनसे अजघन्य अनुत्कृष्ट प्रदेशोंके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। ३५८. भव्य जीवोंमें ओघके समान भङ्ग है। अभव्य, मिथ्यादृष्टि और असंज्ञो जीवों में मत्यज्ञानी जीवोंके समान भङ्ग है । वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें सब प्रकृतियोंके जघन्य प्रदेशोंके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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