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________________ ११४ महाबंधे पदेसबंधाहियारे . लोगा। अवत्त० जह. अंतो०, उक्क० असंखेज्जा लोगा। चदुजादि-आदावथावर-सुहुम-अपज्जत्त-साधारण. भुज-अप्पद० जह० एग०, उक्क. पंचासीदिसागरोवमसदं । एवं अवत्त०। जह० अंतो० । अवढि० णाणा भंगो । पंचिंदि०पर०-उस्सा०-तस०-बादर-पज्जा -पत्ते भुज-अप्पद०-अवढि णाणाभंगो। अवत्त० ज० अंतो०, उक्क० पंचासीदिसागरोवमसदं० । ओरा० भुज०-अप्पद० जह० एग०, उक्क० तिण्णिपलिदो० सादि० । अवढि० जह० एग०, उक्क० सेढीए असंखें । अवत्त० जह• अंतो०, उक्क० अणंतकालम। एवं ओरालि०अंगो-वरि । णवरि अवत्त० नह० अंतो०, उक्क० तेत्तीसं० सादि० । आहारदुगं तिण्णिपदा जह० एग०, अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० अद्धपोग्गल । समचदु०-पसत्थ०-सुभग-सुस्सर-आर्दै भुज०-अप्पद० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवढि० जह० एग०, उक्क० सेढीए असंखें। अपत्त० जह० अंतो०, उक्क० बेछावहि० सादि० तिण्णिपलि० देसू० । तित्थ० भुज०- अप्पद० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवढि० जह० एग०, अवत्त जह० अंतो०, उक्क० तेत्तीसं० सादि० । णीचा० णधुंसगभंगो । णवरि अवत्त० जह० है। चार जाति, आतप, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणके भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर एकसौ पचासी सागरप्रमाण है। इसी प्रकार अवक्तव्यपदकी अपेक्षा अन्तरकाल है । मात्र इस पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। अवस्थितपदका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। पञ्चेन्द्रियजाति, परघात, उच्छास, त्रस, बादर, पर्याप्त और प्रत्येकके भुजगार, अल्पतर और अवस्थितपदका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर एकसौ पचासी सागर है। औदारिकशरीरके भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तीन पल्य है। अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर जगश्रोणिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्त कालप्रमाण है। इसी प्रकार औदारिकशरीर आङ्गोपाङ्ग और वर्षभनाराच संहननका भङ्ग जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर है । आहारकद्विकके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और चारोंका उत्कृष्ट अन्तर अर्धपुद्गल परिवर्तनप्रमाण है। समचतुरस्रसंस्थान, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर और आदेयके भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है। अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर जगश्रोणिके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तमुहूते है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य अधिक दो छयासठ सागरप्रमाण है । तीर्थङ्करप्रकृतिके भुजगार और अल्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर है। नीचगोत्रका भङ्ग नपुंसकवेदके समान १. आ०प्रतौ 'सुहुमसं अपजत्त' इति पाठः । २. आ०प्रतौ 'उक्क० सेढीए अणंतकालम०' इति पाठः । ३ ता०आ०प्रत्योः 'ओरालि०भंगो वज्जरि' इति पाठः। .४ आ०प्रतौ 'जह० एग० उ० अंतो० अवत्त' इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001394
Book TitleMahabandho Part 7
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages394
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size9 MB
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