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________________ जीवसमुदाहा ४१३ अस्सरिदूण जम्हि ट्ठिदा उ० तदो समऊणाए द्वि० उ० अणु० अनंत० । विसम ० उ० अणु० अनंत० । तिसम० उ० अणु० अनंतः । एवं याव पंचिंदियणामाए जहणियाए द्विदीए उ० अणु० अणंतगुणो ति । यथा पंचिं० णामाए तथा बादरपञ्जत्त- पत्ते०-तस० तिब्बमंददा कादव्वा । एवं तिव्वमंददा त्ति समत्तमणियोगद्दारं । एवं अज्झवसाणसमुदाहारो समत्तो जीवसमुदाहारो ६६५. जीवसमुदाहारेति तत्थ इमाणि अट्ठ अणियोगद्दाराणि - एगट्टाणजीव पमाणाणुगमो निरंतरट्ठाणजीवपमाणाणुगमो सांतरट्ठाणजीवपमाणाणुगमो णाणाजीवकलपमाणागमो वड्डपरूवणा यवमज्झपरूवणा फोसणपरूवणा अप्पाबहुगे त्ति । ६६६. एयट्ठाणजीवपमाणाणुगमेण ऍक्ककम्हि द्वाणम्हि जीवा केंत्तिया ? अनंता । निरंतरद्वाणजीवषमाणानुगमेण जीवेहि अविरहिदाणि द्वाणाणि । सांतरट्ठाणजीवपमाणाणुगमेण जीवेहि णिरंतरट्ठाणाणि । णाणाजीवकालपमाणाणुगमेण ऍक्केम्हि द्वाणम्हि णाणा जीवा केवचिरं कालादो होंति ? सव्वद्धा । ६६७. वड्डिपरूवणदाए तत्थ इमाणि दुवे अणुयोगद्दाराणि - अणंतरोवणिधा परंपरोवणिधा चेदि । अणंतरोवणिधाए जहण्णए अज्झवसाणट्ठाणे जीवा थोवा । विदिए अज्झवसाणट्ठाणे जीवा विसेसाधिया । तदिए अज्झवसाणट्ठाणे जीवा विसेसाधिया । एवं स्थितियाँ ऊपर जाकर जिस स्थितिमें उत्कृष्ट अनुभाग स्थित है, उससे एक समय कम स्थिति का उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे दो समय कम स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे तीन समय कम स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है । इस प्रकार पचेन्द्रिय जाति नामकर्मकी जघन्य स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है- इस स्थानके प्राप्त होने तक जानना चाहिए । यहाँ जिस प्रकार पचेन्द्रियजाति नामकर्मका कथन किया है, उसी प्रकार बादर, पर्याप्त, प्रत्येक और त्रस नामकर्मकी तीव्र-मन्दताका कथन करना चाहिए । इस प्रकार तीव्रमन्दता नामक अनुयोगद्वार समाप्त हुआ । इस प्रकार अध्यवसानसमुदाहार नामक अनुयोगद्वार समाप्त हुआ । जीवसमुदाहार ६६५. जीवसमुदाहारका प्रकरण है । उसमें ये आठ अनुयोगद्वार होते हैं- - एकस्थानजीवप्रमाणानुगम, निरन्तरस्थानजीवप्रमाणानुगम, सान्तरस्थानजीवप्रमाणानुगम, नानाजीवकालप्रमाणानुगम, वृद्धिप्ररूपणा, यवमध्यप्ररूपणा, स्पर्शनप्ररूपणा और अल्पबहुत्व | ६६६. एकस्थानजीवप्रमाणानुगमकी अपेक्षा एक-एक स्थानमें जीव कितने हैं ? अनन्त हैं । निरन्तरस्थान जीवप्रमाणानुगमकी अपेक्षा जीवोंके विरहसे रहित सब स्थान हैं । सान्तरस्थानजीवप्रमाणानुगमकी अपेक्षा जीवोंके अन्तरसे रहित सब स्थान हैं । नानाजीवकालप्रमाणानुगमकी अपेक्षा एक-एक स्थानमें नाना जीवोंका कितना काल है ? सर्वदा है । ६६७. वृद्धिप्ररूपणाकी अपेक्षा उसमें ये दो अनुयोगद्वार होते हैं - अनन्तरोपनिधा और परम्परोपनिधा । अनन्तरोपनिधाकी अपेक्षा जघन्य अध्यवसानस्थानमें जीव सबसे स्तोक हैं । द्वितीय अध्यवसानस्थान में जीव विशेष अधिक हैं। तृतीय अध्यवसानस्थानमें जीव विशेष अधिक हैं। इस प्रकार यवमध्यके प्राप्त होने तक प्रत्येक स्थानमें जीव विशेष अधिक, विशेष Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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