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________________ तिव्वमंदपरूवणा ४०१ तणं दणं या उकस्सअणु० अणंतगुणो अनंतगुणाए सेटीए णेदव्वं । तदो जाहिंतो द्विदीहिंतो एयंतसादपाओग्गजहण्णगं अणुभागं भाणिदूण णियत्तिदा उकस्सियाए fate उकस्सियमणुभागस्स तदो ऍतो द्विदीदो णियत्तो तदो द्विदीदो या समऊ १० तसे दिए जह० अणु० अनंतगु० । तदो पुण उक्कस्सियादो हिदीदो णिव्वग्गणकंडीओ हिदीओ ओसक्किदूण जा हिदी तिस्से ट्ठिदीए उक्क० अणु० अनंतगु० । तदो पुणणिव्वग्गणकंडयमेत्तीणं उक्क० अणु० अनंतगु० अनंतगुणाए सेढीए णिरंतरं दव्वं । तदो पुण हेट्ठादो ऍकिस्से द्विदीए जह० अणु० अणंतगु० । तदो पुण उकस्सगादो दुगुणणिव्वग्गणकंडय मेंत्तीओ हिदीओ ओसकिदूण या हिदी तिस्से द्विदीए उक्क० अणु० अणंतगु० । तदो णिव्वग्गणकंडयमेत्तीणं उक्क० अणु० अनंतगुणा सेढीए णिरंतरं णेदव्वं । तदो पुण एकिस्से द्विदीए जह० अणु० अनंतगु० । तदो पुण उक्क० द्विदीदो तिगुणणिव्वग्गणकंडयमेंत्तीओ हिदीओ ओसकिदूण जाहिदी तिस्से दिए उक्क० अणु० अनंतगु० । तदो णिव्वग्गणकंडयमेंत्तीणं द्विदीणं उ० अणु अनंतगु० अणंतगुणाए सेडीए निरंतरं दव्वं । एवं हेट्ठादो एकिस्से दिए जहणाणुभागस्स उवरिमाणं द्विदीणं असंखेजाणं उक्कस्सगा अणुभागा । एवं ओघसिजमाणा हेट्ठिमहिदीणं जहण्णाणुभागेहि उवरिमाणं द्विदीणं उकस्साणुभागेहि ताव आगदं याव असादस्स समाणं जहण्णयं द्विदिबंधं णिव्वग्गणकंडगेण अपत्ता त्ति । तदो ० माए हिदी० जह० अणु० अनंतगु० । तदो उवरिमाणं द्विदीणं जम्हि द्विदीदो प्रमाण असंख्यात स्थितियोंका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है जो उत्तरोत्तर अनन्तगुणित श्रेणिरूपसे ले जाना चाहिए। अनन्तर जिस स्थितिसे एकान्त सातावेदनीयप्रायोग्य जघन्य अनुभागको कहकर और लौटकर उत्कृष्ट स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग कहा था, उस स्थितिसे एक समय कम जो स्थिति है, उसका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है । फिर उत्कृष्ट स्थितिसे निर्वर्गणाकाण्डकमात्र स्थितियों हटकर जो स्थिति है, उस स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग पूर्वोक्त जघन्य अनुभागवाली स्थितिसे अनन्तगुणा है । फिर आगे निर्वर्गणाकाण्डकमात्र स्थितियों का 'उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणित श्रेणिरूपसे उत्तरोत्तर अनन्तगुणा- अनन्तगुणा है । तदनन्तर अधस्तन एक स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है । अनन्तर उत्कृष्ट स्थितिसे द्विगुणे निर्वर्गणाकाण्डकप्रमाण स्थितियाँ हटकर जो स्थिति है, उस स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे आगे निर्वर्गणाकाण्डक प्रमाण स्थितियोंका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणित श्रेणिरूपसे ले जाना चाहिए। तदनन्तर अधस्तन एक स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है । अनन्तर उत्कृष्ट स्थितिसे तिगुणे निर्वर्गणाकाण्डकमात्र स्थितियाँ हटकर जो स्थिति है, उस स्थितिका उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है । उससे निर्वर्गणाकाण्डकमात्र स्थितियोंका उत्कृष्ट अनुभाग निरन्तर अनन्तगुणित श्रेणिरूपसे जाना चाहिए । इस प्रकार अवस्तन एक स्थितिका जवन्य अनुभाग और उपरिम असंख्यात स्थितियोंके उत्कृष्ट अनुभाग हैं। इस प्रकार क्रम-क्रम से घटाते हुए अधस्तन स्थितियोंके जघन्य अनुभागों और उपरिम स्थितियोंके उत्कृष्ट अनुभागोंसे तब तक आये हैं, जब तक असाताके समान जघन्य स्थितिबन्धको एक निर्वर्गेणाकाण्डकके द्वारा नहीं प्राप्त हुए हैं। उससे अधस्तन स्थितिका जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। उससे उपरिम स्थितियोंके जिस स्थान में उत्कृष्ट अनु१. ता० आ० प्रत्यो० य समऊ० इति पाठः । २. अनंतगुणो सेटीए इति पाठः । ३. ता० आ० प्रत्योः अट्ठादो इति पाठः । ४. ता० आ० प्रत्योः द्विदिबंधणिव्वग्गणकंडगेण इति पाठः । ५१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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