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________________ द्विदिसमुदाहारो ३९९ तिन्वमंदो ६५९. एतो तिव्वमंदं वत्तइस्सामो । तं जहा-मदियावरणस्स जहणियाए द्विदीए जहण्णपदे जहण्णाणुभागो थोवो । विदियाए द्विदीए जहण्णाणुभागो अणंतगुणो । तदियाए द्विदीए जहण्णाणुभागो अणंतगुणो। एवं पलि० असं० जहण्णाणुभागो अणंतगुणो । तदो जह० द्विदी० उक्कस्सपदे उक्क० अणुभा० अणंतगु० । तदो यम्हि द्विदा जहण्णा तदो समउत्तराए द्विदीए जह० अणंतगुणो। विदि० उक्क० अणु० अणंतगुणो । इतरत्थ जहण्णाणु० अणंतगु० । तदियाए हिदी० उक्क ० अणु० अणंतगु० । इतरत्थ जह० अणु० अणंतगु० एवं णेदव्वं साव उक्कस्सियाए हिदीए जहण्णपदे जहण्णाणुभागो अणंतगुणो। तदो उक्कस्सियाए द्विदीए पलिदोवमस्स असंखें भागं ओसक्किदूण जम्हि द्विदो उक्कस्सो' तदो समउत्तराए विदीए उक० अणुभागो अणंतगुणो । विसमउ० हिदी० उक्क० अणु० अणंतगु० । नदो तिसमउ० हिदी० उक्क० अणु० अणंतगु० । एवं अणुबंध० उक्क० अणंतगु० । एवं याच मदियावरणस्स उक्क० द्विदी० उक्कस्सपदे उक्क० अणु० अणंतगु०। पंचणा०-णवदंस०-मोहणीयछब्बीस-अप्प०सत्थ०४उप०-पंचंत० एदेसि मदियावरणभंगो।। तीव्र-मन्द ६५९. आगे तीव्रमन्दको बतलाते हैं। यथा-मतिज्ञानावरणकी जघन्य स्थितिके जघन्य पदमें जघन्य अनुभाग सबसे स्तोक है। इससे दूसरी स्थितिमें जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। इससे तीसरी स्थितिमें जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। इस प्रकार पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण स्थितियों के प्राप्त होने तक प्रत्येक स्थितिमें जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। इससे जघन्य स्थितिके उत्कृष्ट पदमें उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। इससे पहले अन्तकी जिस स्थिति में जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा कह आये हैं उससे एक समय अधिक स्थितिमें जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। इससे प्रारम्भका द्वितीय स्थितिमें उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। इससे आगेकी दूसरी स्थितिमें जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है। इससे प्रारम्भकी तीसरी स्थितिमें उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। इससे आगेकी तीसरी स्थितिमें जघन्य अनुभाग अनन्तगणा है। इस प्रकार उत्कृष्ट स्थितिके जघन्य पदमें जघन्य अनुभाग अनन्तगुणा है-इस स्थानके प्राप्त होने तक ले जाना चाहिए । आगे उत्कृष्ट स्थितिसे पल्योपमके असंख्यातवें भागप्रमाण पीछे जाकर जिस स्थितिमें उत्कृष्ट अनुभाग स्थित है, उससे एक समय अधिक स्थितिमें उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। इससे दो समय अधिक स्थितिमें उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। इससे तीन समय अधिक स्थितिम उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है। इस प्रकार मतिज्ञानावरणकी उत्कृष्ट स्थितिके उत्कृष्ट पदमें उत्कृष्ट अनुभाग अनन्तगुणा है-इस स्थानके प्राप्त होने तक जानना चाहिए । पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, छब्बीस मोहनीय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात और पाँच अन्तराय इनका भङ्ग मतिज्ञानावरणके समान है। विशेषार्थ---यहाँ मतिज्ञानावरणकी जघन्य स्थितिबन्धसे लेकर उत्कृष्ट स्थितिबन्धके प्राप्त होने तक प्रत्येक स्थितिमें जघन्य और उत्कृष्ट अनुभाग कितना होता है, इसका विचार किया गया है। विचार करते हुए यहाँ जो कुछ बतलाया गया है उसका भाव यह है कि प्रथमसे दूसरीमें और दूसरीसे तीसरोमें, इस प्रकार पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण १. ता. प्रतौ जम्हि हिदी उक्कस्सो इति पाट । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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