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________________ ३८५ पयडिसमुदाहारो ६४२. वेउव्वियका० णिरयभंगो। आहार'०-आहार मि० सव्वबहूणि साद० । जस०-उच्चा० असं० । देवग० असं० । कम्म० असं० । तेज० असं० । वेउ० असं० । केवलणा०-केवलदं०-विरियंत. असं० । असादा० विसें। संजलणलोमे० असं० । माया० विसे । कोधे० विसे० । माणे० विसे० । आभिणि०-परिभोग० असं० । चक्खु. असं० । सुद०-अचक्खु०-भोगंत० असं० । ओधिणा०-ओधिदं०लाभंत. असं० । मणपज०-दाणंत० असं० । पुरिस० असं० । अरदि० असं० । सोग० असं० । भय० असं० । दुगु० असं० । णिद्दा० असं० । पयला० असं० । अजस० असं । रदि० असं० । हस्स० असं० । देवाउ० असं० । एवं मणपज०-संज-सामाइ०छेदो०-परिहार० । एदेसु आहारसरीरं अत्थि । संजदासंज० परिहार भंगो। णवरि ६४२. वैक्रियिककाययोगी जीवोंमें नारकियोंके समान भङ्ग है। आहारककाययोगी और आहारकमिश्रकाययोगी जीवोंमें सातावेदनीयके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान सबसे बहत है। इनसे यशःकीर्ति और उञ्चगोत्रके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे देवगतिके अनुभागवन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है । इनसे कार्मणशरीरके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे तैजसशरीरके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे वैक्रियिकशरीरके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है । इनसे केवलज्ञानावरण, केवलदर्शनावरण और वीर्यान्तरायके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है । इनसे असातावेदनीयके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे संज्वलन लोभके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं । इनसे संज्वलन मायाके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन है। इनसे संज्वलन क्रोधके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान विशेष हीन है। इनसे संज्वलन मानके अनुभागबन्धा ध्यवसान स्थान विशेष हीन है। इनसे आभिनिबोधिकज्ञानावरण और परिभोगान्तरायके अनुभागबन्धाध्यवसानः स्थान असंख्यातगुणे हीन है । इनसे चक्षदर्शनावरणके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे श्रुतज्ञानावरण, अचक्षुदर्शनावरण और भोगान्तरायके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे अवधिज्ञानावरण, अवधिदर्शनावरण और लाभान्तरायके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे मनःपर्ययज्ञानावरण और दानान्तरायके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे पुरुषवेदके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातंगुणे हीन है। इनसे अरतिके अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हीन है। इनसे शोकके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे भयके अनुभागवन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे जुगुप्साके अनुभागवन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीना हैं । इनसे निद्राके अनुभागवन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे प्रचलाके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे अयशःकीर्तिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असं यातगुणे हीन हैं। इनसे रतिके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे हास्यके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे देवायुके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इसी प्रकार मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामायिकसंयत छेदोपस्थापनासंयत और परिहारविशुद्धिसंयत जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है १. ता० आ० प्रत्योः णिरयभंगो। एवं वेउव्वियमि० । आहार० इति पाठः । २. ता. प्रतौ संजलणं लोभे इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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