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________________ पयडिसमुदाहारो ३७३ पयडिसमुदाहारो पमाणाणुगमो ६२७. पगदिसमुदाहारे त्ति तत्थ इमाणि दुवे अणियोगद्दाराणि णादव्वाणि भवंति'-पमाणाणुगमो अप्पाबहुगे त्ति । पमाणाणुगमेण पंचणाणावरणीयाणं केवडियाणि अणुभागबंधज्झवसाणट्ठाणााणि ? असंखेजा लोगा अणुभागबंधज्झवसाणहाणाणि । एवं सव्वपगदीणं । एवं याव अणाहारए ति णेदव्वं । णवरि अवगद०सुहुमसंप०एगेगं परिणामहाणं । एवं पमाणाणुगमो समत्तो अप्पाबहुअं ६२८. अप्पाबहुगं दुवि०-सत्थाणअप्पाबहुगं चेव परत्थाणप्पाबहुगं चेव । सत्थाणप्पाबहुगे पगदं । दुवि० । ओघे० सव्वबहूणि केवलणाणावरणीयस्स अणुभाणगबंधज्झव साणट्ठाणाणि । आभिणि० अणुभागबंध० असंखेजगुणहीणाणि । सुदणाणा० अणुभागबंध० असं०गुणही० । ओधिणाणा० अणुभा० असं०गुव्ही । मणपञ्ज'. अणुभागबंध० असं०गुणही। ६२९. सव्वबहूणि केवलदंस० अणुभागबंध० । चक्खु० अणुभागबंध० असं०गुणही० । अचक्खु ० अणुभा० असं०गुणही० । ओधिदं० अणुभागबंध० असं०गुणही । थीणगिद्धि ० असं०गुणही० । णिद्दाणिद्दा० अणुभा० असं०गुणही। पयलापयला. प्रकृतिसमुदाहार प्रमाणानुगम ६२७. प्रकृतिसमुदाहारमें ये दो अनुयोगद्वार ज्ञातव्य हैं-प्रमाणानुगम और अल्पबहुत्व । प्रमाणानुगमसे पाँच ज्ञानावरणीयके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान कितने है ? असंख्यात लोकप्रमाण अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान हैं। इसी प्रकार सब प्रकृतियोंके विषयमें जानना चाहिए। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अपगतवेदी और सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवोंमें एव एक परिणामस्थान होता है। इस प्रकार प्रमाणानुगम समाप्त हुआ। अल्पबहुत्व ६२८. अल्पबहुत्व दो प्रकारका है-स्वस्थान अल्पबहुत्व और परस्थान अल्पबहुत्व । स्वस्थान अल्पबहुत्वका प्रकरण है। निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे केवलज्ञानावरणीयके अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान सबसे बहुत है। इनसे आभिनिबोधिकज्ञानावरणके अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे श्रतज्ञानावरणके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे अवधिज्ञानावरणके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे मनःपर्ययज्ञानावरणके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। ६२९. केवलदर्शनावरणके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान सबसे बहुत हैं। इनसे चक्षुदर्शनावरणके अनुभागबन्धाध्यवसान स्थान असंख्यातगुणे होन हैं। इनसे अचक्षुदर्शनावरणके अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे अवधिदर्शनावरणके अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे स्त्यानगृद्धिके अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हीन हैं। इनसे निद्रानिद्राके अनुभागबन्धाध्यवसानस्थान असंख्यातगुणे हीन १. ता० प्रतौ इमाणि दव्वाणि भवंति इति पाठः । २. श्रा० प्रतौ केवडियाणि अणुभागबंधज्झवसाण डाणाणि ! एवं इति पाठः । ३. आ. प्रतौ सुदणाणा भणभागबंध० असं०गुणही। मणपन० इति पाठः। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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