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________________ वड्ढीए फोसणं ३६५ खेतं ६२०. खेत्ताणुगमेण दुवि० । ओघे० पंचणा०-णवदंस-मिच्छ०-सोलसक०-भयदु०-ओरालि०-तेजा०क०-वण्ण० ४-अगु०-उप०-णिमि०-पंचंत० छवाड्वि-छहाणि-अवढि० केवडि खेत्ते ? सव्वलोगे। अवत्त० केव० ? लो० असंखें । तिण्णिआउ०-वेउब्वियछ०-आहारदुग-तित्थ० छवड्वि-छहाणि-अवहि-अवत्त० केव० ? लो० असंखें । सेसाणं चोदसपदा के० ? सव्वलोगे । एवं भुजगारभंगो याव अणाहारए त्ति णेदव्वं । फोसणं ६२१. फोसणाणुगमेण दुवि० । ओघे० पंचणा०-छदंस०-अहक०-भय-दु०-तेजा०क०-वण्ण०४-अगु०-उप०-णिमि०-पंचंत० छववि-छहाणि-अवट्ठि. केवडि खेतं फोसिदं ? सव्वलोगो। अवत्त० के० खेतं फोसिदं ? लो० असंखें। थीणगिद्धि०३. अणंताणु०४-तेरसपदा सव्वलो० । अवत्त० अढचों । मिच्छत्त० तेरसपदा णाणा०भंगो। •अवत्त० अह-बारह। अपच्चक्खाण. ४ तेरसपदा सव्वलो० अवत्त० छच्चों । दोआउ०-आहारदुर्ग चौदसपदा लोग. असंखें । मणुसाउ० चोट्सपदा क्षेत्र ६२०. क्षेत्रानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायकी छह वृद्धि, छह हानि और अवस्थितपदके बन्धक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सब लोक क्षेत्र है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्र है। तीन आयु, वैक्रियिक छह, आहारकद्विक और तीर्थङ्करकी छह वृद्धि, छह हानि, अवस्थित और अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? लोकके असंख्यानवें भागप्रमाण क्षेत्र है। शेष प्रकृतियोंके चौदह पदोंके बन्धक जीवोंका कितना क्षेत्र है ? सब लोकप्रमाण क्षेत्र है। इस प्रकार भुजगारभङ्गके समान अनाहारक मार्गणा तक जानना चाहिए। स्पर्शन ६२१. स्पर्शनानुगमको अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश। ओघसे पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, आठ कपाय भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुगलघु, उपघात, निर्माण और पाँच अन्तरायकी छह वृद्धि, छह हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्यानगृद्धित्रिक और अनन्तानुबन्धीचतुष्कके तेरह पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मिथ्यात्वके तेरह पदोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अप्रत्याख्यानावरण चारके तेरह पदोंके बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह वटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयु और आहारकद्विकके चौदह पदोंके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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