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________________ पदणिक्खेवे सामित्तं ३४५ सागा-जा० उक्कस्ससंकिलेसादो पडिभग्गस्स अणंतभागेण वड्डिदण वड्ढी । तस्सेव से काले ज० अवट्ठा० । ज० हा० क. ? अण्ण. असंजदसम्मादिहिस्स सव्वाहि पज० सागा. तप्पा०संकिलि० मिच्छत्ताभिमु० चरिमसमयअसंज.' तस्स ज० हाणी। ___५८७. आदेसेण णेरइएसु पंचणा०-छदंसणा०-बारसक०-पंचणोक०-अप्पसत्य. [४-उप०-पंचंत०] ज० वड्ढी' क० ? अण्ण० असंजद० सव्वाहि पन्ज. सागार० सव्वविसु० अणंत भागेण वड्डिदृण वड्ढी हाइदूण हाणी एक्क० अवट्ठाणं । थीणगि०३मिच्छ०-अणंताणुवं०४ ज० वड्ढी क० १ अण्ण ० सम्मत्तादो परिवदमा० दुसमयमिच्छा० तस्स ज० वड्ढी । ज० हा० क ? अण्ण० मिच्छा० सव्वाहि प० सागा० सव्ववि० से काले सम्मत्तं पडिवजिहिदि त्ति तस्स ज० हा० । ज० अवहा० क. ? अण्ण० मिच्छा० सागा० तप्पा० उक्कस्सिगादो विसोधिं गदो अणंतभागेण वड्डिदण अवद्विदस्स तस्स ज० अवट्ठा० । सादासाद०-थिरादितिण्णियु० ओघं । इत्थि०-णस० ज० तिणि विक.? अण्ण० मिच्छादि० ओघभंगो। अरदि-सोग० ज० क.? अण्ण सम्मादिहिस्स तिण्णि वि० । तिरिक्ख०-मणुसाऊणं ज० वड्ढी क० ? अण्ण० मिच्छा० जहण्णिगाए पजत्तणिव्व० णिव्वत्तमा० अणंतभागेण वड्ढिदूण वड्ढी हाइदूण हाणी अन्यतर असंयतसम्यग्दृष्टि मनुष्य और मनुष्यनी अनन्तभागवृद्धिके द्वारा जघन्य वृद्धिका स्वामी है तथा वही अनन्तर समयमें जघन्य अवस्थानका स्वामी है। जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त, साकार-जागृत, तत्प्रायोग्य संक्लेशयुक्त और मिथ्यात्वके अभिमुख अन्यतर असंयतसम्यग्दृष्टि जीव अन्तिम समयमें जघन्य हानिका स्वामी है। ५८७. आदेशसे नारकियोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, बारह कषाय, पाँच नोकषाय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात और पाँच अन्तरायकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त, साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर असंयतसम्यग्दृष्टि जीव अनन्तभागवृद्धिद्वारा जघन्य वृद्धिका, अनन्तभागहानिद्वारा जघन्य हानिका और इनसे किसी एक स्थानपर जघन्य अवस्थानका स्वामी है। स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व और अनन्तानुबन्धीचतुष्कको जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? सम्यक्त्वसे गिरकर जिसे मिथ्यात्वमें दो समय हुए हैं,ऐसा अन्यतर जीव जघन्य वृद्धिका स्वामी है । जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त, साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध जो अन्यतर मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तर समयमें सम्यक्त्वको प्राप्त करेगा वह जघन्य हानिका स्वामी है । जघन्य अवस्थानका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत जो अन्यतर मिथ्यादृष्टि जीव तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट विशुद्धिको प्राप्त होकर अनन्तभागवृद्धिके साथ अवस्थित है वह जघन्य अवस्थानका स्वामी है। सातावेदनीय, असातावेदनीय और स्थिर आदि तीन युगलका भंग ओघके समान है। स्त्रीवेद और नपुंसकवेदके जघन्य तीनों ही पदोंका स्वामी कौन है ? अन्यतर मिथ्यादृष्टिके ओघके समान भंग है। अरति और शोकके तीनों पदोंका स्वामी कौन है? अन्यतर सम्यग्दृष्टि तीनों ही पदोंका स्वामी है। तिर्यञ्चाय और मनुष्यायकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जघन्य पर्याप्ति निवृत्तिसे निवृत्तमान अन्यतर मिथ्यादृष्टि अनन्तभागवृद्धिके द्वारा जघन्य वृद्धिका, अनन्तभागहानिके द्वारा जघन्य हानिका और इनमेंसे किसी १. ता० प्रतौ चरिमे समयं असंज० इति पाठः । २. ता० आ० प्रत्योः अप्पसत्थ....." इति पाठः। For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education Internation४४
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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