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________________ पदणिक्खेवे सामित्तं ३४३ एक्कदरत्थमवहाणं । अरदि-सोग० ज० वड्ढी क० ? अण्ण० पमत्त० संज० सागा० तप्पा० विसु० अणंतभागेण वड्ढिदूण वड्ढी हाइद्ण हाणी एकदरत्थमवद्वाणं । णिरय- देवाउ० ज० वड्ढी क० ? अण्ण० तिरिक्ख० मणुस ० जहण्णिगाए पञ्जगत्तणिव्वत्तीए णिव्वत्तमाणगस्स मज्झिमपरिणामस्स अनंतभागेण वड्ढिदूण चड्ढी हाइदूण हाणी एक० अवट्ठाणं । तिरिक्ख - मणुसाऊणं ज० वड्डी क० ? अण्ण० तिरिक्ख० मणुस० जहणियाए अपजत्तगणिव्वत्तीए णिव्वत्तमाणगस्स मज्झिम० अनंतभागेण वड्ढिदूण वड्ढी हाइदूण हाणी एक्क० अवद्वा० । णिरयग० देवग०ज० वड्ढी क० १ अण्ण० तिरिक्ख० मणुस ० परियत्तमाणमज्झिम० अणंतभागेण वड्ढिदूण वड्डी हाइदूण हाणी एक० अवद्वा० । एवं तिण्णजादि - दोआणु ० - सुहुम० - अपज० साधार० । मणुस ० ' - छस्संठा० छस्संघ ०- मणु०साणु ० दोविहा० सुभग- दूभग- सुस्सर- दुस्सर-आदें० - अणादे० - उच्चा० ज० वड्ढी क० १ अण्ण० चदुगदि० मिच्छादि० परिय० मज्झिम० अनंतभागेण वड्ढिदूण वड्डी हाइदूण हाणी एक० अवट्ठा० । तिरिक्ख० तिरिक्खाणु० -णीचा० ज० वड्डी क० ? अण्ण० सत्तमा पुढवीए रइगस्स मिच्छादि० सव्वाहि पज० सागारजा० तप्पा उक्क०विसोधीदो परिभग्गो अनंतभागेण वड्ढिदूण बड्डी । तस्सेव से काले ज० अवट्ठा० । ज० हा० क० ? अण्ण० सत्तमाए पुढवीए मिच्छादि ० सव्वाहि पज० सागा० सव्वऔर इनमें से किसी एक स्थान पर अवस्थानका स्वामी है। अरति और शोककी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? साकार - जागृत और तत्प्रायोग्य विशुद्ध जो अन्यतर प्रमत्तसंयत जीव है वह अनन्त भागवृद्धि के द्वारा वृद्धि, अनन्तभागहानिके द्वारा हानि और इनमेंसे किसी एक स्थानपर अवस्थानका स्वामी है । नरकायु और देवायुकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जघन्य पर्याप्त निवृत्तिसे निवृत्तिमान और मध्यम परिणामवाला ऐसा अन्यतर जो तिर्यश्च और मनुष्य है वह अनन्तभागवृद्धि के द्वारा वृद्धि, अनन्तभागहानिके द्वारा हानि और इनमेंसे किसी एक स्थान पर अवस्थानका स्वामी है । तिर्यवायु और मनुष्यायुकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? जघन्य अपर्याप्त वृत्ि निवृत्तमान और मध्यम परिणामवाला जो अन्यतर तिर्यश्व और मनुष्य है वह अनन्तभागवृद्धिके द्वारा वृद्धि, अनन्तभागहानिके द्वारा हानि और इनमेंसे किसी एक स्थानपर अवस्थानका स्वामी है । नरकगति और देवगतिको जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला अन्यतर तिर्यन और मनुष्य अनन्तभागवृद्धि के द्वारा वृद्धि, अनन्तभागहानिके द्वारा हानि और इनमेंसे किसी एक स्थान पर अवस्थानका स्वामी है। इसी प्रकार तीन जाति, दो आनुपूर्वी, सूक्ष्म अपर्याप्त और साधारणकी अपेक्षा स्वामित्व जानना चाहिए। मनुष्यगति, छह संस्थान, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, दो विहायोगति, सुभग, दुर्भग, सुस्वर, दुःखर, आदेय, अनादेय और उच्चगोत्रकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? अन्यतर चार गतिका परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला मिथ्यादृष्टि जीव अनन्तभागवृद्धिके द्वारा वृद्धि, अनन्तभागहानिके द्वारा हानि और इनमें से किसी एक स्थान पर अवस्थानका स्वामी है । तिर्यञ्चगति, तिर्यगत्यानुपूर्वी और नीचगोत्रकी जघन्य वृद्धिका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियों से पर्याप्त और साकार-जागृत ऐसा अन्यतर सातवीं पृथिवीका मिथ्यादृष्टि नारकी तत्प्रायोग्य उत्कृष्ट विशुद्ध प्रतिभग्न होकर अनन्तभागवृद्धि करता हुआ जघन्य वृद्धिका स्वामी है । तथा वही अनन्तर समय में जघन्य अवस्थानका स्वामी है । जघन्य हानिका स्वामी कौन है ? सव पर्याप्तियोंसे पर्याप्त, साकारजागृत और सर्वविशुद्ध जो अन्यतर सातवीं पृथिवीका मिथ्यादृष्टि नारकी अनिवृत्तिकरण के १. ता० प्रतौ साद० मणुस० इति पाठः । For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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