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मुजगारबंधे कोसणं
३०५ ५३१. तेउ० धुवियाणं तिणिप० अह-णव०। थीणगि०३-अणताणु०४णस०-तिरिक्ख०-एइंदि०-हुंड-तिरिक्खाणु०-थावर-दूभग-अणादे०-णीचा० तिष्णिप० अह-णव० । अवत्त० अढचो० । सादासाद०-मिच्छ०-चदुणोक०-उजो०थिरादितिणियु. चत्तारिप० अह-णव० । अपचक्खाण०४-ओरालि० तिष्णिप० अह-णव० । अवत्त० दिवड्डचो० । इत्थि०-पुरिस०-दोआउ०-मणुस-पंचिं०-पंचसंठा०-ओरा०अंगो०-छस्संघ-मणुसाणु०-आदा०-दोविहा०-तस०-सुभग-दोसरआदे०-उच्चा० चत्तारिप० अहचो० । देवाउ०-आहार०२-तित्थ० ओघं । देवगदि० ४ तिण्णिप० दिवड्डचो० । अवत्त० खेत्त० । एवं पम्माए वि । णवरि अपञ्चक्खाण. ४-ओरा०-ओरा अंगो० अवत्त० पंचचो०। देवगदि०४ तिण्णिप० पंचचो० । करना चाहिये। तथा जो तिर्यश्च या मनुष्य मर कर सातवें नरकमें गमन करता है उसके भी यह स्पर्शन सम्भव है, अतः कृष्ण लेश्यामें यह कुछ कम छह बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। यद्यपि सामान्य नारकियोंमें तीर्थङ्कर प्रकृतिके सब पदोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान कहा है फिर भी यहाँ कृष्ण और नील लेश्यामें क्षेत्रके समान और कापोत लेश्यामें नारकियोंके समान कहने का कारण यह है कि कृष्ण और नीललेश्यामें नारकियोंके तीर्थङ्कर प्रकृतिका बन्ध नहीं होता। इन लेश्याओंमें केवल मनुष्योंके ही तीर्थङ्कर प्रकृतिका बन्ध होता है, इसलिए इन लेश्याओंमें तीर्थङ्कर प्रकृतिके सब पदोंक। जो क्षेत्र कहा है उसी प्रकार यहाँ स्पर्शन कहा है। तथा कापोत लेश्यामें नारकियोंके भी तीर्थङ्कर प्रकृतिका बन्ध होता है, इसलिए यह नारकियोंके समान कहा है। शेष कथन सुगम है।
५३१. पीतलेश्यामें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्यानगृद्धि तीन, अनन्तानुबन्धी चार, नपुंसकवेद, तिर्यश्चगति, एकेन्द्रियजाति, हुण्डसंस्थान, तिर्यश्चगत्यानुपूर्वी, स्थावर, दुर्भग, अनादेय और नीचगोत्रके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सातावेदनीय, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, चार नोकषाय, उद्योत और स्थिर आदि तीन युगलके चार पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पशेन किया है। अप्रत्याख्यानावरण चार और औदारिकशरीरके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम डेढ़ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । स्त्रीवेद, पुरुषवेद, दो आयु, मनुष्यगति, पञ्चेन्द्रियजाति, पाँच संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, आतप, दो विहायोगति, बस, सुभग, दो स्वर, आदेय और उच्चगोत्रके चार पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू प्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। देवायु, आहारकद्विक और तीर्थङ्कर प्रकृतिका भङ्ग ओघके समान है। देवगतिचतुष्कके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने डेढ़ बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इसी प्रकार पद्मलेश्यामें भी जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अप्रत्याख्यानावरण चार, औदारिकशरीर और
हारिक आङ्गोपाङ्गके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम पाँच बटे चौदह राजप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। देवगतिचतुष्कके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम पाँच बटे चौदह
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