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________________ २७० महाबंधे अणुभागबंधाहियारे अवहि० ज० ए०, उ० तिण्णिसाग० सादि० । अवत्त० णत्यि अंतरं । ४८४. तेऊए पंचणा०-छदसणा०--चदुसंज०--भय-दु०--तेजा.-क.--वण्ण०४अगु०४-बादर-पज्ज०-पत्ते-णिमि०-पंचंत. भुज०-अप्प० ज० ए०, उ. अंतो० । अवहि० ज० ए०, उ० बेसाग० सादि० । थीणगि०३-मिच्छ०-अणंताणु०४-इत्यि०णस०-तिरिक्व०-एइंदि०-पंचसंठा-पंचसंघ०-तिरिक्खाणु०-आदाउज्जो०-अप्पसत्य०थावर-भग-दुस्सर-अणादें-णीचा. तिण्णिप० ज० ए०, अवत्त० ज. अंतो०, उ. बेसाग० सादि० । सादासाद.--चदुणोक०--थिरादितिण्णियु० दोपदा णाणा भंगो। अवहि० ज० ए०, उ० बेसाग० सादि० । अवत्त० ज० उ० अंतो० । अहक०-ओरालि.. तित्थ० भुज० अप्प० ज० ए०, उ० अंतो० । अवहि० ज० ए०, उ० बेसाग० सादि। अवत्त० णत्थि अंतरं । पुरिस०-मणुस०--पंचिं०--समचदु०--ओरा०अंगो०-वज्जरि०मणुस०-पसत्थ०-तस०-सुभग-सुस्सर-आदें-उच्चा० भुज०-अप्प० ज० ए०, उ० अंतो। अवहि० ज० ए०', उ० बेसाग० सादि।अवत्त० ज० अंतो०, उ० बेसाग० सादि० । दोआउ० सोधम्मभंगो। देवाउ०--आहारदुगं तिषिणप० ज० ए०, उ. अंतो० । लेश्याम तीर्थङ्कर प्रकृतिके भुजगार और अल्पतर पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तीन सागर है। प्रवक्तव्यपदका अन्तरकाल नहीं है। ४८४. पीतलेश्यामें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, चार संज्वलन, भय, जुगुप्सा, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघुचतुष्क, बादर, पर्याप्त, प्रत्येक, निर्माण और पाँच अन्तरायके भुजगार और अल्पतर पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक दो सागर है। स्त्यानगृद्धि तीन,मिथ्यात्व, अनन्तानुवन्धी चार,स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, तिर्यश्चगति, एकेन्द्रियजाति, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, आतप, उद्योत, अप्रशस्त विहायोगति, स्थावर, दुर्भग, दुःस्वर, अनादेय और नीचगोत्रके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है. अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और सबका उत्कृष्ट अन्तर साधिक दो सागर है। सातावेदनीय, असातावेदनीय, चार नोकषाय और स्थिर आदि तीन युगलके दो पदोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक दो सागर है। अवक्तव्यपदका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। आठ कषाय, औदारिकशरीर और तीर्थकर प्रकृतिके भुजगार और अस्पतरपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय हैं और उत्कृष्ट अन्तर साधिक दो सागर है । अवक्तव्यपदका अन्तरकाल नहीं है। पुरुषवेद, मनुष्यगति, पश्चन्द्रियजाति, समचतुरस्रसंस्थान, औदारिकाङ्गोपाङ्ग, वर्षभनाराचसंहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, प्रशस्त विहायोगति, त्रस, सुभग, सुस्वर, आदेय और उच्चगोत्रके भुजगार और अल्पतर पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त है। अवस्थितपदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक दो सागर है। अवक्तव्यपदका जघन्य अन्तर अन्तमुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक दो सागर है । दो आयुओंका भङ्ग सौधर्मकल्पके समान है । देवायु और अाहारकद्विकके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तमुहूर्त १. ता. श्रा. प्रत्योः अंतो० । अपचन०ए० इति पाठः। Jain Education International • For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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