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________________ wrrrrrrrrrrrrrrrrr अप्पाबहुगपरूवणा २३५ __४४४. णिरएसु सव्वमंदाणु० हस्स० । रदि० अणंत० । दुगुं० अर्णतः । भय० अणंत० । पुरिस० अणंत० । माणसंज. अणंत० । कोषसंज. विसे । मायासंज. विसे० । लोभसंज. विसे । सोग० अणंत० । अरदि० अणंत० । इत्थि० अणंत० । णस० अणंत० । पचला. अणंत० । णिद्दा० अणंत० । मणपज्जव०-दाणंत० दो वि. तु० अणंत० । ओधिणा०-ओघिदं०-लाभंत. तिण्णि वि तु०अणंत० । सुद०-अचक्खु०भोगंत० तिण्णि वि तु० अणतः । चक्खु० अणंत । आभिणि-परिभोग० दो वितु० अणंत० । अपञ्चक्खाणमाणो अणंत । कोषो विसे० । माया विसे०। लोभो विसे । एवं पञ्चक्खाणा०४ । विरियंत० अणंत० । केवलणा-केवलदंस० दो वि तु० अणंत० । पचलापचला अणंत.। णिहाणिदा० अणंत० । थीणगि० अणंत० । अणंताणु०माणो अणंत । कोधो विसे०। माया विसे०। लोभो विसे । मिच्छा० अणंत० । ओरालि. अणंत । तेज. अणंत०। कम्मइ० अणंत । तिरिक्ख० अणंत । मणुस० अणंत० । ४४४. नारकियोंमें हास्य सबसे मन्द अनुभागवाला है। इससे रतिका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे जुगुप्साका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे भयका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है । इससे पुरुषवेदका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है । इससे मानसंज्वलनका अनुभाग अनन्तगणा अधिक है। इससे क्रोधसंज्वलनका अनुभाग विशेष अधिक है। इससे माया संज्वलनका अनुभाग विशेष अधिक है। इससे लोभसंज्वलनका अनुभाग विशेष अधिक है। इससे शोकका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है । इससे अरतिका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है । इससे स्त्रीवेदका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है । इससे नपुंसकवेदका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे प्रचलाका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे निद्राका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे मनापर्ययज्ञानावरण और दानान्तरायके अनुभाग दोनों ही तुल्य होकर अनन्तगुणे अधिक हैं। इनसे अवधिज्ञानावरण, अवधिदर्शनावरण और लाभान्तरायके अनुभाग तीनों ही तुल्य होकर अनन्तगुणे अधिक हैं। इनसे श्रुतज्ञानावरण, अचक्षुदर्शनावरण और भोगान्तरायके अनुभाग तीनों ही तुल्य होकर अनन्तगुणे अधिक हैं। इनसे चक्षुदर्शनावरणका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे आभिनिबोधिकज्ञानावरण और परिभोगान्तरायके अनुभाग दोनों ही तुल्य होकर अनन्तगुणे अधिक हैं । इनसे अप्रत्याख्यानावरण मानका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे अप्रत्याख्यानावरण क्रोधका अनुभाग विशेष अधिक है । इससे अप्रत्याख्यानावरण मायाका अनुभाग विशेष अधिक है । इससे अप्रत्याख्यानावरण लोभका अनुभाग विशेष अधिक है। इसी प्रकार प्रत्याख्यानावरणचतुष्कका अल्पबहुत्व है । प्रत्याख्यानावरण लोभके अनुभागसे वीर्यान्तरायका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है । इससे केवलज्ञानावरण और केवलदर्शनावरणके अनुभाग दोनों ही तुल्य होकर अनन्तगुणे अधिक हैं । इनसे प्रचलाप्रचलाका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे निद्रानिद्राका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे स्त्यानगृद्धिका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है । इससे अनन्तानुवन्धी मानका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे अनन्तानुबन्धी क्रोधका अनुभाग विशेष अधिक है। इससे अनन्तानुबन्धी मायाका अनुभाग विशेष अधिक है। इससे अनन्तानुबन्धी लोभ का अनुभाग विशेष अधिक है । इससे मिथ्यात्वका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे औदारिकशरीरका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे तैजसशरीरका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे कार्मणशरीरका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे तिर्यश्चगतिका अनुभाग अनन्तगुणा अधिक है। इससे मनुष्यगतिका अनुभाग अनन्तगुणा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001392
Book TitleMahabandho Part 5
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages426
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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