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महाबंधे अणुभागबंधाहियारे
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३२. कम्मइ० पंचणा ० छदंस०- बारसक० - सत्तणोक ० -- अप्पसत्य०४ - उप०पंचंत० ज० छ०, अज० सव्वलो० । थीणगिद्धि ०३ - मिच्छ०-- अनंताणुबं ०४ - इत्थि० - वुंस० पंचिं ० रा ० - तेजा ० क० - पसत्थ०४ - अगु०३ - उज्जो ० -तस०४ - णिमि० ज० ऍक्कारह०, अज० सव्वलो० । साददंडओ ओघो। तिरिक्ख० तिरिक्खाणु० - णीचा ० घं । देवगदिपंचगं खेत्तभंगो । सेसं ओरालिय० भंगो । आदा० ज० खेल ०, अज० सव्वलो० ।
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३६३. इत्थवेदे पंचणा० णवदंस० - मिच्छ० - सोलसक० - अप्पसत्थ०४ – उप ० - पंचत० ज० खेत्त०, अज० सव्वलो ० । एवं छण्णोक० । सादासाद० - तिरि०- एइंदि०हुंड० - तिरिक्खाणु० थावर० - थिराथिर -- सुभासुभ- दूभग-अणादें० - अजस ० णीचा० ज० अ० अ० सव्वलो ० । इत्थि० - मणुस० पंचसंठा ० - श्रोरा० गो० - इस्संघ० मणुसाणु०
स्वामित्वका विचारकर स्पर्शन का स्पष्टीकरण कर लेना चाहिए। शेष कथन स्पष्ट ही है ।
३६२. कार्मणकाययोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, बारह कषाय, सात नोकषाय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम छह बटे चौदह राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। स्त्यानगृद्धि तीन, मिध्यात्व, अनन्तानुबन्धी चार, स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, पञ्च ेन्द्रियजाति, श्रदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, प्रशस्त वर्णचतुष्क, अगुरुलघुत्रिक, उद्योत, त्रसचतुष्क और निर्माणके जघन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंने कुछ कम ग्यारह बटे चौदह राजूप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । सातावेदनीय दण्डकका भङ्ग श्रोघके समान है । तिर्यगति, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी और नीचगोत्रका भङ्ग ओघके समान है । देवगतिपञ्चकका भङ्ग क्षेत्रके समान है । शेष भङ्ग श्रदारिककाययोगी जीवोंके समान है । आपके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका भङ्ग क्षेत्र के समान हैं । अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है ।
विशेषार्थ - कार्मणकाययोगका सर्व लोकप्रमाण स्पर्शन है । यहाँ जिन प्रकृतियोंके अजघन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंका सब लोकप्रमाण स्पर्शन कहा है, वह इसी दृष्टिसे कहा है । पाँच ज्ञानावरणादिका जघन्य अनुभागबन्ध सम्यग्दृष्टि जीव करते हैं, इसलिए इनके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका स्पर्शन कुछ कम छह बटे चौदह राजूप्रमाण कहा है। कार्मणकाययोगमें नीचे छह और ऊपर पाँच राजुप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन करनेवाले जीवोंके स्त्यानगृद्धि तीन आदिका जघन्य अनुभागहोता है, इसलिए इनके जघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंका कुछ कम ग्यारह बटे चौदह राजूप्रमाण स्पर्शन कहा है । शेष प्रकृतियोंका स्पर्शन निर्दिष्ट स्थानोंको देखकर घटित कर लेना चाहिए। ३६३. स्त्रीवेदी जीवों में पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिध्यात्व, सोलह कषाय, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, उपघात और पाँच अन्तरायके जघन्य अनुभाग के बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है । अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इसी प्रकार छह नोकषायों का भङ्ग है । सातावेदनीय, असातावेदनीय, तिर्यञ्चगति, एकेन्द्रिजाति, हुण्डसंस्थान, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, स्थावर, स्थिर, अस्थिर, शुभ, अशुभ, दुर्भग, अनादेय, अयश:कीर्ति और नीचगोत्र के जघन्य और अजघन्य अनुभागके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और सब लोकप्रमाण क्षेत्रका स्पर्शन किया है । स्त्रीवेद, मनुष्यगति, पाँच संस्थान,
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