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महाबंधे अणुभागबंधाहियारे ५५. एइंदिएसु घादि०४ जह० अणुभा० कस्स० ? अण्ण. बादर० सव्वाहि प० सागार-जा० सव्वविसु० जह० अणु० वट्ट० । वेद० आउ०-णामा-गो० तिरिक्खोघं । एवं बादर० मुहुमपज्जत्तापज्जत्तः ।
५६. पुढवि०-आउ०-वणप्फदि०-बादरवणप्फदिपत्तेय-णिगोद० घादि०४ जह० अणुभा० कस्स ? अण्ण० बादर० पजत्त० सागार-जा० सव्वविसु० जह० अणु० वट्ट । तिण्णि क. जह० अणुभा० कस्स० १ अण्ण० परियत्त०मज्झिमपरि० । आउ० जह. अणु० कस्स० ? अण्ण. अपज्जत्तगणिव्वत्तीए णिव्वत्तमाण० मज्झिम० जह० अणु० वढ० । एवं बादर-मुहुम-पञ्जत्तापजत्ताणं च । तेउ०-वाउ० धादि०४ गोदस्स० जह० अणु० कस्स० ? अण्ण० बादरपजत्त० सागार-जा० सव्वविसु० जह० अणु० वट्ट० । सेसाणं पुढ विभंगो।
५७, ओरालियका० सत्तण्णं कम्माणं ओघं । गोदे जह० अणु० कस्स० १ अण्ण. बादरतेउ०-वाउ० सागार-जा० सव्वविसु०।
५८. ओरालियमि० घादि०४ जह० अणुभा० कस्स ? अण्ण तिरिक्खमणुस० असंजदसम्मादिढि० सागार-जा० सव्वविसु० सेकाले सरीरपजत्ती गाहिदि त्ति । गोद०
५५. एकेन्द्रियोंमें चार घातिकर्मों के जघन्य अनुभाग बन्धका स्वामी कौन है ? सब पर्याप्तियोंसे पर्याप्त साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और जघन्य अनभागवन्धमें अवस्थित अन्यतर बादर एकेन्द्रिय जीव उक्त कर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । वेदनीय, आयु, नाम और गोत्र कर्मका भङ्ग सामान्य तिर्यश्चोंके समान है। इसी प्रकार बादर एकेन्द्रिय, सूक्ष्म एकेन्द्रिय और इनके पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिये ।
५६. पृथिवीकायिक, जलकायिक, वनस्पतिकायिक, बादरवनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर और निगोद जीवोंमें चार घातिकर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और जघन्य अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर बादरपर्याप्त उक्त जीव उक्त कर्मोके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है । तीन कर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? अन्यतर परिवर्तमान मध्यम परिणामवाला उक्त जीव तीन कर्मों के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। आयुकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? अपर्याप्त निवृत्तिसे निवृत्तिमान, मध्यम परिणामवाला और जघन्य अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यतर उक्त जीव आयुकर्मके जवन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। इसी प्रकार इनके बादर और सूक्ष्म तथा इन सबके पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंके जानना चाहिये । अग्निकायिक और वायुकायिक जीवोंमें चार घातिकर्म और गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और जघन्य अनुभागबन्धमें अवस्थित अन्यत्तर बादरपर्याप्त जीव उक्त कर्मोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है। शेष कर्मोंका भङ्ग पृथिवीकायिक जीवोंके समान है।
५७. औदारिककाययोगी जीवोंमें सात कौके जघन्य अनुभागबन्धका भङ्ग ओघके समान है। गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार-जागृत और सर्वविशुद्ध अन्यतर बादर अनिकायिक और वायुकायिक जीव गोत्रकर्मके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी है।।
५८. औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें चार घातिकोंके जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सकार-जागृत, सर्वविशुद्ध और तदनन्तर समयमें शरीर पर्याप्तिको ग्रहण करेगा ऐसा अन्यतर तिर्यश्च और मनुष्य असंयतसम्यग्दृष्टि जीव उक्त कर्मा के जघन्य अनुभागबन्धका स्वामी
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