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महाणुभागबंधाहिया रे णिसेगपरूवणा
३. णिसेगपरूवणदाए अट्टणं कम्माणं देसघादिफदयाणं आदिवग्गणाए आदि कादुण णिसेगो । उवरि अप्पडिसिद्धं । चदुष्णं घादीणं सव्वघादिफदयाणं आदिवग्गणाए आदि काढूण णिसेगो । उवरि अप्पडिसिद्धं । एवं णिसेयपरूवणा त्ति समत्तमणियोगद्दारं ।
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फद्दयपरूवणा
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४. फदयपरूवणदा अनंताणंताणं अविभागपडिच्छेदाणं समुदयसमागमेण एगो वो भवदि । अणंताणंताणं वग्गाणं समुदयसमागमेण एगा वग्गणा भवदि । अणंताणंताणं गाणं समुदयसमागमेण एगो फदयो भवदि । एवं फक्ष्यपरूवणा समत्ता ।
यद्यपि सर्वघाति और देशघाति यह भेद घातिकम में ही सम्भव है, फिर भी अघाति कर्मोंका अनुभाग घातिप्रतिबद्ध मानकर यहाँ ये दो भेद किये गये हैं, क्योंकि अधाति कर्म भी जीवके ऊर्ध्वगमनत्व आदि प्रतिजीवी गुणोंका घात करनेवाले होनेसे वे घातिप्रतिबद्ध ही हैं । श्रघाति कर्मोंको अति संज्ञा देनेका कारण केवल इतना ही है कि वे जीवके अनुजीवी गुणोंका अंशतः भी घात करनेमें समर्थ नहीं हैं। इस प्रकार कर्मोंके देशघाति और सर्वघाति निषेकोंका जिसमें विचार किया जाता है, वह निषेक प्ररूपणा । तथा जिसमें अनुभागकी मुख्यतासे कर्मोंके स्पर्धकोंका विचार किया जाता है, वह स्पर्धक प्ररूपणा है। इस प्रकार मूलप्रकृति अनुभागबन्धका विचार सर्व प्रथम इन दो अनुयोगोंके द्वारा किया गया है ।
निषेकप्ररूपणा
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सर्वप्रथम निषेकप्ररूपणाका विचार करते हैं। उसकी अपेक्षा आठों कर्मों के जो देशघाति स्पर्धक हैं, उनके प्रथम वर्गणा से लेकर निषेक हैं जो आगे बराबर चले गये हैं। तथा चार घातिकर्मोंके जो सर्वघाति स्पर्धक हैं, उनके प्रथम वर्गणासे लेकर निषेक हैं जो आगे बराबर चले गये हैं। विशेषार्थ - इस प्रकरणमें आठों कर्मा के यथासम्भव सर्वघाति और देशघाति निषेक कहाँ से प्रारम्भ होकर कहाँ समाप्त होते हैं, इस विषयका संकेत किया गया है। विशेष स्पष्टीकरण आगे करेंगे। इस प्रकार निषेकप्ररूपणा अनुयोगद्वार समाप्त हुआ ।
स्पर्धकप्ररूपणा
४. अब स्पर्धक प्ररूपणाका विचार करते हैं। उसकी अपेक्षा अनन्तानन्त अविभाग प्रति - च्छेदोंके समुदायसमागम से एक वर्ग होता है । अनन्तानन्त वर्गों के समुदाय समागमसे एक वर्गणा होती है और अनन्तानन्त वर्गणाओंके समुदायसमागम से एक स्पर्धक होता है ।
विशेषार्थ - प्रकृत में सबसे जघन्य अनुभाग शक्त्यंशका नाम अविभाग प्रतिच्छेद हैं । प्रत्येक कर्म-परमाणु ये विभागप्रतिच्छेद अनन्तानन्त उपलब्ध होते हैं । किन्तु यहाँ ऐसे कर्म-परमाणु विवक्षित हैं जिनमें समान अविभागप्रतिच्छेद् पाये जाते हैं । ऐसे जितने कर्म - परमाणु होते हैं, उनमें से प्रत्येककी वर्ग और उनके समुदायकी वर्गणा संज्ञा है । अनुभागकी अपेक्षा एक-एक वर्गणा में अनन्तानन्त वर्ग होते हैं और अनन्तानन्त वर्गणाओंका एक स्पर्धक होता है। पहली वर्गणा से दूसरी वर्गणा प्रत्येक वर्ग में एक अविभागप्रतिच्छेद अधिक होता है । दूसरी वर्गणा से तीसरी वर्गणाके प्रत्येक वर्ग में भी एक-एक अविभागप्रतिच्छेद अधिक होता है । इस प्रकार एक-एक अविभागप्रतिच्छेदकी अधिकता स्पर्धककी अन्तिम वर्गणा तक जाननी चाहिए। इसके बाद दूसरे स्पर्धककी प्रथम वर्गणा प्रत्येक वर्ग में अनन्तानन्त अविभाग प्रतिच्छेदों का अन्तर देकर अविभागप्रतिच्छेद
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