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________________ १६० महाबंधे अणुभागबंधाहियारे सागा०- जाणिय० उक० संकिलि० उक्क० वट्ट० । सादावे०-मणुसगदि-पंचिंदि०. ओरालि०-तेजा-क० समचदु० ओरालि.अंगो०-वजरि०-पसत्थ०वण्ण.'४-मणुसाणु०अगु०३-पसत्थ०-तस०४-थिरादिछ०-णिमि-तित्थय०-उच्चागो० उक्क० अणुभा० कस्स० १ अण्ण० सम्मा० सागार० सव्ववि० उक्क० वट्ट० । इत्थि०-पुरिस०-हस्स-रदि. चदुसंठा०-चदुसंघ० उक्क० अणु० कस्स० ? अण्ण० मदियावरणभंगो। णवरि तप्पा.. संकिलि० । तिरिक्खाउ० उक० अणु० कस्स० ? अण्ण० मिच्छा० सागा० तप्पा०. विसु० उक्क० वट्ट० । मणुसाउ० उक० अणु० कस्स० ? अण्ण० सम्मा० तप्पा०विसुद्ध० उक्क० वट्ट । उज्जोवं ओघं । एवं सत्तमाए पुढवीए । उवरिमासु छसु पुढवीसु तं चेव । णवरि उजोवं तिरिक्खाउ०मंगो। ४११. तिरिक्खेसु पंचणा०-णवदंसणा०-असादा०-मिच्छ०-सोलसक०-पंचणोक०णिरयग-हुंड-अप्पसत्थवण्ण०४-णिरयाणुपु० उप०-अप्पसत्थ०-अथिरादिछ०-णीचा.. पंचंत० उक० अणु० कस्स० १ अण्ण पंचिंदि० सण्णि० मिच्छादि० सव्वाहि पज. उक्क० अणु० उक० संकिलि. उक० वट्ट० । सादावे०-देवगदिपसत्थसत्तावीस.. अन्तरायके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? सब पयाप्तियोंसे पयाप्त, साकार जागृत, नियमसे उत्कृष्ट संक्लिष्ट और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर मिथ्यादृष्टि जीव उक्त प्रकृतियोंके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी है । सातावेदनीय, मनुष्यगति, पञ्चेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, तैजसशरीर, कार्मणशरीर, समचतुरस्रसंस्थान, औदारिकाङ्गोपाङ्ग, वऋषभनाराचसंहनन, प्रशस्त वर्णचतुष्क, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, अगुरुजघुत्रिक, प्रशस्तविहायोगति,बस चतुष्क, स्थिर आदि छह, निर्माण, तीर्थङ्कर और उच्चगोत्रके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कोन है ? साकार-जागृत सर्वविशुद्ध और उत्कृष्ट अनुभाग. बन्ध करनेवाला अन्यतर सम्यग्दृष्टि जीव उक्त प्रकृतियों के उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी है । स्त्रीवेद, पुरुषवेद, हास्य, रति, चार संस्थान और चार संहननके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी कौन है। इसका भङ्ग मतिज्ञानावरणके समान है। इतनी विशेषता है कि यह तत्प्रायोग्य संक्लेश परिणामवाले जीवके कहना चाहिये । तिर्यञ्चायुके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? साकार जागृत, तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाला और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनवाला अन्यतर मिथ्याह जीव तिर्यञ्चायुके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। मनुष्यायुके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी कौन है ? तत्प्रायोग्य विशुद्ध परिणामवाला और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करनेवाला अन्यतर सम्यग्दृष्टि जीव मनुष्यायुके उत्कृष्ट अनुभागवन्धका स्वामी है। उद्योतका भङ्ग ओघके समान है। इसी प्रकार सातवीं पृथिवी में जानना चाहिये । पहले की छह पृथिवियों में वही भङ्ग है। इतनी विशेषता है कि उद्योत का भङ्ग तिर्यश्चायुके समान है। ४११. तिर्यश्लोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, असातावेदनीय, मिथ्यात्व, सोलह कषाय, पाँच नोकषाय, नरकगति, हुण्डसंस्थान, अप्रशस्त वर्णचतुष्क, नरकगत्यानुपूर्वी, उपघात, अप्रशस्त विहायोगति, अस्थिर आदि छह, नीचगोत्र और पाँच अन्तरायके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? मिथ्यादृष्टि, सर्व पर्याप्तियोंसे पर्याप्त, उत्कृष्ट संक्लेश युक्त और उत्कृष्ट अनुभागबन्ध करने. वाला, अन्यतर संज्ञी पञ्चेन्द्रिय जीव उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी है। सातावेदनीय, देवगति आदि प्रशस्त सत्ताईस प्रकृतियाँ और उच्चगोत्रके उत्कृष्ट अनुभागबन्धका स्वामी कौन है ? साकार , भा० प्रतौ पसस्थवि-वण्ण. इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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