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________________ अज्झवसाणसमुदारे छट्ठाणपरूवणा १७१ ३७६. प्रोज-जुम्मपरूवणद. . अविभागपलिच्छेदाणि कदजुम्माणि, हाणाणि कदजुम्माणि, कंडयाणि कदजुम्माणि । ३७७. छट्ठाणपरूवणदाए अणंतभागपरिवड्डी काए परिवड्डी सव्वजीवे हि अणंतभागपरिवड्डी। एवडिया परिवड्डो । असंखेंजमागपरिवड्डी काए परिवड्डी असंखेंजालोगामागपरिवड्डी। एवडिया परिवड्डी । संखेजभागपरि०काए परिजहण्णपरितासंखेजप रूखूणगस्स संखेंजमागपरिवड्डी । एवडिया परिवड्डी। संखेजगणपरिवड्डी काए० जहण्णपरिचासंखेजरूवूण० संखेजगणपरिवड्डी एवडिया परि० । असंखेंजगणपरिवड्डी काए. परि० असंखेंजालोगागुणपरि० । एवडि० परि० । अणंतगुणपरि० काए. सव्व-जीवेहि अणंतगुणपरि० । एवडिया परिवड्डी । पहले काण्डक प्रमाण पूर्ववृद्धिको लिए हुए स्थान हो लेते हैं । अनन्तगुणवृद्धिरूप स्थानके प्राप्त होने तक यही क्रम जानना चाहिए। इस प्रकार सब असंख्यात लोक प्रमाण स्थानों में अनन्तगुणवृद्धिरूप स्थान काण्डक प्रमाण होते हैं तथा असंख्यातगुणवृद्धि रूप स्थान काण्डकगुणित काण्डक प्रमाण होते हैं। इसी प्रकार पूर्व-पूर्व वृद्धिरूप स्थानोंका प्रमाण ले आना चाहिए। ____ ३७६. ओजयुग्मप्ररूपणाकी अपेक्षा अविभागप्रतिच्छेद कृतयुग्म होते हैं, स्थान कृतयुग्म होते हैं और काण्डक कृतयुग्म होते हैं। विशेषाथ-ओजयुग्मप्ररूपणामें ओजशब्दका अर्थ विषम संख्या लिया गया है और युग्मशब्दका अर्थ सम संख्या लिया गया है। उसमें भी श्रोजके दो भेद हैं-कलिअोज और त्रेता. ोज । इसी प्रकार युग्मके भी दो भेद हैं-द्वापरयुग्म और कृतयुग्म । स्पष्टीकरण इस प्रकार हैकिसी विवक्षित राशिमें ४ का भाग देनेपर यदि १ शेष रहे तो उस राशिको कलि ओज कहते हैं, यथा १३ । २ शेष रहे तो उस राशिको द्वापरयुग्म कहते है, यथा-१४ । ३ शेष रहें तो उस राशिको त्रेता ओज कहते हैं, यथा-१५ । और शून्य शेष रहे तो उस राशिको कृतयुग्म कहते हैं, यथा-१६ । इस हिसाबसे विचार करनेपर इन अनुभागस्थानों में अविभागप्रतिच्छेद, अनुभागस्थान और काण्डक ये सब राशियाँ कृतयुग्मरूप हैं, यह उक्त कथन का तात्पर्य है। ३७७, षटस्थानप्ररूपणाकी अपेक्षा अनन्तभागवृद्धि किस संख्यासे वृद्धिरूप है! सर्व जीव प्रमाण अनन्तका भाग देकर लब्धको उसमें मिलानेसे अनन्तभागवृद्धि होती है। इतनी वृद्धि होती है । असंख्यात भागवृद्धि किस संख्यासे वृद्धिरूप है ? असंख्यात लोकका भाग देकर लब्धको उसमें मिलाने पर असंख्यातभागवृद्धि होती है। इतनी वृद्धि होती है। संख्यातभागवृद्धि किस संख्यासे वृद्धिरूप है ? एक कम जघन्य परीतासंख्यातका भाग देकर लब्धकी विवक्षित राशिमें मिलाने पर संख्यातभागवृद्धि होती है । इतनी वृद्धि होती है। संख्यातगुणवृद्धि किस संख्यासे वृद्धिरूप है' एक कम जघन्य परीतासंख्यातसे विवक्षित राशिको गुणित करनेपर संख्यातगुणवृद्धि होती है। इतनी वृद्धि होती है। असंख्यातगुणवृद्धि किस संख्यासे वृद्धिरूप है ? असंख्यात लोकोंसे विवक्षित राशिको गुणित करने पर असंख्यातगुणवृद्धि होती है। इतनी वृद्धि होती है। अनन्तगुणवृद्धि किस संख्यासे वृद्धिरूप है सब जीवराशिसे विवक्षित राशिके गुणित करने पर अनन्तगुणवृद्धि होती है। इतनी वृद्धि होती है। विशेषार्थ-यहाँ षट्स्थान प्ररूपणामें उक्त छह वृद्धियों को प्राप्त करनेके लिए भागहार और गुणकार क्या हैं,इसके निर्देशके साथ वृद्धि कितनी होती है,यह बतलाया है। मुख्य राशियाँ तीन ४. ता. प्रतौ अणतय ( भा) गपरिवट्टि इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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