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________________ १४४ महाबंधे अणुभागबंधादियारे भागं पबंधो तस्स उद्द० वड्डी। उक्क० हाणी कस्स० ? यो उक्क० सागारक्खएण पडिभग्गो तप्पाओग्गजहण्णए पडिदो तस्स उक्क० हाणी । तस्सेव से काले उक्क० अवट्ठाणं । वेद०णामा०-गोद० उक० वड्डी कस्स० ? यो जहण्णगादो विसोधीदो० तदो उक० अणुभा० पबंधो तस्स उक्क० वड्डी । उक्क० हाणी कस्स० ? यो उक्क० अणुभागं बंधमाणो सागारक्खएण पडिभग्गो० तस्स उक्क० हाणी । तस्सेव से काले उक्क० अवट्ठाणं । आउ० ओघं । एवं सव्वअपजत्तगाणं आणदादि याव सबट्ठ ति सव्वएइंदि० सव्वविगलिंदि०सव्वपंचकायाणं । ३१६. मणुस०३ घादि०४ णिरयभंगो। वेद० णामा०-गोद० उक. वड्डी अवट्ठाणं च ओघं । उक० हाणी कस्स० ? उवसामगस्स परिवदमाणयस्स दुसमयबंध. गस्स तस्स उक. हाणी। आउ० ओघं। पंचिंदि०-तस०२-पुरिस०-चक्खु०-सणिण घादि०४ णिरयभंगो। सेसाणं ओघं । पंचमण पंचवचि०-ओरालिय० घादि० ४ णिरयभंगो । सेसाणं मणुसि०भंगो । ३१७. ओरालियमि० घादि०४ उक० वड्डी कस्स० ? यो उक्क० अणु० बंधमाणो उक्कस्सयं संकिलेसेण से काले सरीरपज्जत्ती जाहिदि त्ति तस्स उक्क० वड्डी । उक० हाणी कस्स० ? यो [ उक० ] अणुभा० बंधमाणो दुसमयसरीरपज्जत्ती जाहिदि त्ति [ सागार बन्ध करता है, वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? जो उत्कृष्ट अनु. भागका बन्ध करनेवाला जीव साकार उपयोगका क्षय होनेसे प्रतिभन्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य अनुभागका बन्ध करता है, वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। उसीके तदनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है। वेदनीय, नाम और गोत्रकमके उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो जघन्य विशुद्धिसे उत्कृष्ट विशुद्धिको प्राप्त होकर उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करता है,वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उस्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? जो उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव साकार उपयोगके क्षय होनेसे प्रतिभन्न होकर तत्प्रायोग्य जघन्य अनुभागका बन्ध करता है, वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। उसीके तदनन्तर समयमें उत्कृष्ट अवस्थान होता है। आयुकर्मका भंग ओघके समान है। इसी प्रकार सब अपर्याप्तक, आनतकल्पसे लेकर सर्वार्थसिद्धि तकके देव, सब एकेन्द्रिय, सब विकलेन्द्रिय और सब पाँचों स्थावरकायिक जीवोंके जानना चाहिए। ३१६. मनुष्यत्रिकमें चार घातिकर्मोंका भंग नारकियों के समान है। वेदनीय, नाम और गोत्रकर्मकी उत्कृष्ट वृद्धि और उत्कृष्ट अवस्थानका स्वामित्व ओघके समान है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? उपशान्तमोहसे गिरनेवाला जो उपशामक द्विसमयबन्धक है, वह उत्कृष्ट हानिका स्वामी है। आयुकर्मका भंग ओघके समान है। पंचेन्द्रियद्विक, सद्विक, पुरुषवेदी, चक्षुदर्शनी और संज्ञी जीवोंमें चार घातिकर्मोंका भंग नारकियोंके समान है। शेष कर्मों का भंग ओघके समान है। पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी और औदारिककाययोगी जीवों में चार घाति काँका भंग नारकियोंके समान है। शेष कर्मोंका भंग मनुष्यनियोंके समान है। ३१७. औदारिकमिश्रकाययोगी जीवोंमें चार घातिकर्मोंकी उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी कौन है ? जो उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव उत्कृष्ट संक्लेशके साथ तदनन्तर समयमें शरीरपर्याप्तिको प्राप्त होगा वह उत्कृष्ट वृद्धिका स्वामी है। उत्कृष्ट हानिका स्वामी कौन है ? जो उत्कृष्ट अनुभागका बन्ध करनेवाला जीव दो समयमें शरीर पर्याप्तिको प्राप्त होगा और साकार उपयोगके क्षय होनेसे प्रति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001391
Book TitleMahabandho Part 4
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages454
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size11 MB
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