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________________ महाबंधे द्विदिबंधा हियारे ० ६५०. विभंगे धुविगाणं तिष्णिवड्डि-हाणि अवट्ठि० अट्ठचोद० सव्वलो० । सादादि दस • सव्वपदा लोग असंखे० अट्ठचोद० सव्वलो० । मिच्छत्त • अवत्त ० अट्ठ-बारह ० । सपदा णाणावरण भंगो। इत्थि ० - पुरिस० - पंचिंदि० - पंचसंठा० ओरालि० अंगो० छस्संघ०दोविहा०-तस०- सुभग- दोसर आदें० तिण्णिवड्ढि हाणि अवट्ठि० अट्ठ-बारहचों० । अवत्त० अडचों० । णस० - तिरिक्ख० - एइंदि ० - ओरालि० हुंडसं ० - तिरिक्खाणु० - थावर - दूर्भागअणादे० - णीचागो० तिण्णिवड्डि-हाणि अवडि० अट्ठचों सव्वलो० । अवत्त • अट्ठचोह ० । ४०० वरि ओरालि० अवत्त ० त ० । दोआयु० - तिण्णिजादि० खेत० । मणुसायु-मणुस दि मणुसाणु ० - आदाव - उच्चा० सव्वपदा अडचोद ० । वेउव्वियछ० मदिभंगो । उज्जोवजसगि० सव्वपदा अट्ठ-तेरहचो० । पर० - उस्सा० - पज्जत्त - पत्ते० सव्वपदा सादभंगो । वरि अवत्त • खेत० । बादर० अवस० खेत० ! सेसपदा अट्ठ - तेरह० । सुहृम-अपज्जतसाधार० तिण्णिवड्डि- हाणि - अवट्ठि० लोग० - असंख्रे ० - सव्वलो० । अवत्त ० खेच० । अजस० अवत० अट्ठ-तेरह ० | सेसं सादभंगो । ६५०. विभङ्गज्ञानी जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । साता आदि दस प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण, कुछ कम आठवटे चौदह राजू और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। मिथ्यात्वके वक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू और कुछ कम बारहबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । शेष पदोंके बन्धक जीवोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । स्त्रीवेद, पुरुषवेद, पश्चेन्द्रियजाति, पाँच संस्थान, औदारिकाङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, दो विहायोगति, सं, सुभग, दो स्वर और यकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू और कुछ कम बारह बटे चौदहराजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । नपुंसकवेद, तिर्यञ्चगति, एकेन्द्रियजाति, औदारिकशरीर, हुण्डसंस्थान, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, स्थावर, दुर्भग, अनादेय और नीचगोत्रकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इतनी विशेषता है कि औदारिकशरीर के अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान हैं । दो और तीन जाति सब पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । मनुष्यायु, मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, श्रातप और उच्चगोत्र के सब पदों के बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ चौदह क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वैक्रियिक छहके सब पदोंके बन्धक जीवोंका भङ्ग मत्यज्ञानी जीवोंके समान है । उद्योत और यशःकीर्तिके सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। परघात, उच्छ्रास, पर्याप्त और प्रत्येक के सब पदोंके बन्धक जीवोंका भङ्ग सातावेदनीयके समान है । इतनी विशेषता है कि अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका भङ्ग क्षेत्र के समान है । बादर प्रकृतिके प्रवक्तञ्यपदके बन्धक जीवोंका भङ्ग क्षत्रके समान है। शेष पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह बटे चौदह राज क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थितपदके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । यशःकीर्तिके अवक्तव्यपदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राज और कुछ कम तेरह बटे चौदह राज क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष भङ्ग सातावेदनीयके समान हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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