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________________ ४५७ वहिबंधे फोसणं असं० । सेसं णाणावरणभंगो। वेउवि०-वेउवि०अंगोवंग. सव्वपदा केव० फो० ? लो० असं०भा० बारहचोंड्स० देसू० । अवत्त० खेतं । ओरालि० अवत्त० बारह । सेसपदा तिरिक्खगदिभंगो। आहारदुगं खेत्तं । उजो०-बादर०-जस. दोववि-हा० अट्ठ-तेरह० । सेसं सादभंगो। सुहुम-अपज०-साधार० दोवड्डि-हा० लो० असंखेंज० सबलो० । सेसं तिरिक्खगदिभंगो। तित्यय. तिण्णिवड्डि-हाणि-अवट्ठि. अट्टचों। अवत्त० खेत्त० । उच्चा० असंखजभागवड्डि-हाणि-अवढि०-अवत्त० सबलो० । बेवाड्डिहाणि० अट्टचोद्द० । असंखजगुणवड्डि-हाणि० खेत्तभंगो। एवं ओघभंगो कायजोगिकोधादि०४-अचक्खुदं भवसि०-आहारग ति। ६३४. णेरइएसु धुविगाणं तिण्णिवड्डि हाणि अवढि० सादादिबारस-उञ्जो० सव्वपदा छच्चों६० । दोआयु०-मणुसगदिदुग-तित्थय०-उच्चा० सव्वपदा खेत्तक । मिच्छत्त० अवत. पंचचौदस । सेसाणं अवत्त० खेत्तभंगो । सेसाणं सव्वपदा छच्चो० । एवं सवणेरइगाणं और दो हानियोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण है । शेष पदों के बन्धक जीवोंका स्पर्शन ज्ञानावरण के समान है। वैक्रियिक शरीर और वैक्रियिकाङ्गोपाङ्गके सब पदोंके बन्धक जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण और कुछ कम बारहबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पशन किया है। अवक्तव्य पदका भङ्ग क्षेत्रके समान है। और रिकशरीरके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम बारहबटे चौदह राजु क्षेत्रका स्वर्शन किया है। शेष पदोंके बन्धक जीवोंका भङ्ग तिर्यक्रगतिके समान है। आहारकद्विकका भङ्ग क्षेत्रके समान है। उद्योत, बादर और यशःकीर्तिकी दो वृद्धि और दो हानियों के बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू और कुछ कम तेरहवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदोंका भङ्ग सातावेदनीयके समान है। सूक्ष्म, अपर्याप्त और साधारणकी दो वृद्धि और दो हानियोंके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष पदोंका भङ्ग तिर्यश्चगतिके समान है। तीर्थङ्कर प्रकृतिकी . तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। उच्चगोत्रकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि, अवस्थित और अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो वृद्धि और दो हानियोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। असंख्यातगुणवृद्धि और असंख्यात गुणहानिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है। इसीप्रकार ओघके समान काययोगी, क्रोधादि चार कषायवाले, अचक्षुदर्शनी, भव्य और आहारक जीवोंके जानना चाहिये। - ६३४. नारकियोंमें ध्रवबन्धवाली प्रकृतियोंकी तीन वृद्धि, तीन हानि और अवस्थित पदके बन्धक जीवोंने तथा साताआदि बारह और उद्योतके सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम छहवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। दो आयु, मनुष्यगतिद्विक, तीर्थङ्कर और उच्चगोत्रके सब पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। मिथ्यात्वके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम पाँचवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष प्रकृतियोंके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। शेष प्रकृतियोंके सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम छहवटे Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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