SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 431
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१८ महाबँधे द्विदिबंधाहियारे ० बं० ओघं । सुहुमसंप० सव्वपग० संखेज्जभागवड्डि-हाणी एगस० । अवट्टि • ओघं । ८८१. णिरसु धुविगाणं सेसाणं च सव्वे भंगा ओघं णिरयगदीणामभंगो | णवरि पगदिविसेसं णादव्वं । एवं याव अणाहारग त्ति दव्वं । णवरि कम्मइ० - अणाहा० धुविगाणं अवदिं जह० एग०, उक्क० तिण्णिसमयं । देवगदिपंचगस्स अवद्विदं जह० एग०, उक्क० समयं । सेसाणं थावरपगदीणं अवट्ठिदं जह० एग०, उक्क० तिण्णिसमयं । इत्थ० - पुरिस० - मणुसग ० - चदुजादि - पंचसंठाण - ओरालि० अंगो०- छस्संघडण - मणुसाणु० दो विहा०-तस - सुभग- दोसर आदेंज्ज० उच्चागो० अवट्ठि० जह० एग०, उक्क० बेसम० । अवत्त० एग० । एवं कालं समत्तं । अंतरं ८८२, अंतरानुगमेण दुवि० - श्रघे० आदे० । ओघे० पंचणा० - चदुदंसणा ०चदुसंज० - पंचतरा ० असंखज्जभागवड्डि- हाणि-अवडि० अंतरं केव० १ जह० एग०, उक्क ० तो ० | बेवड-हाणीबंध० जह० एग०, उक्क० अनंतकालं । असंखेज्जगुणवड्डिहाणि - अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० अद्धपोंगल० । णवरि असंखेज्जगुणव० जह० 2 एक समय है । तथा अवस्थितबन्धका काल के समान है। सूक्ष्मसाम्परायिक संयत जीवोंमें सब प्रकृतियोंकी संख्यातभागवृद्धि और संख्यात भागहानिका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । तथा अवस्थितबन्धका काल ओवके समान है । १. नारकियों में ध्रुवबन्धवाली तथा शेष प्रकृतियोंके सब भङ्ग ओके अनुसार नरकगति नामकर्मके समान है । इतनी विशेषता है कि प्रकृतिविशेष जानना चाहिए। इसी प्रकार अनाहारक मार्गणातक जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियों के अवस्थितबन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तीन समय है । देवगति पञ्चक अवस्थितबन्धका जवन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । शेष स्थावर प्रकृतियों के अवस्थितबन्धका जवन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल तीन समय है । स्त्रीवेद, पुरुषवेद, मनुष्यगति, चार जाति, पाँच संस्थान, औदारिक आङ्गोपाङ्ग, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, दो विहायेगति, त्रस, सुभग, दो स्वर, आदेय और उच्चगोत्र के अवस्थित बन्धका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है । अवक्तव्य बन्धका जघन्य और उत्कृष्ट काल एक समय है । इस प्रकार एक जीवकी अपेक्षा काल समाप्त हुआ । अन्तर ८२. अन्तरानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - ओघ और आदेश । ओघसे पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण, चार संज्वलन और पाँच अन्तरायकी असंख्यात भागवृद्धि, असंख्यात भागहानि और अवस्थित बन्धका अन्तरकाल कितना है ? जघन्य अन्तर एक समय है ओर उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । दो वृद्धि और दो हानिबन्धोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अनन्तकाल है । असंख्यातगुणवृद्धि, असंख्यातगुणहानि और अवक्तव्य बन्धका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy