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________________ ३७३ भुजगारबंधे फोसणाणुगमो सवलो० । अवत्त० बारह । सुहुम-अपज०-साधार० तिण्णिप० लोग० असंखें सबलो० । अवत्त० खेत० । अजस० तिण्णिप० सादभंगो। अवत्त० अट्ठ-तेरह । वेउब्बियछक्क-तित्थय० ओघं । एस भंगो पंचमण-पंचवचि०-विभंग०-चक्खुदं०-सण्णि त्ति । णवरि जोगेसु ओरालि० अवत्त० खेत । विभंग० देवगदि-देवाणुपु० तिण्णिप० पंचचौ । अवत्त० खेत । ओरालि०-वेउवि०-वेउव्वि० अंगो०तिण्णिप० ऍकारह० । अवत्त० खेत्त। ___७८४. कायजोगि०-ओरालि०-अचक्खु०-भवसि०-आहारग त्ति मूलोघं । णवरि किंचि विसेसो। ओरालिय० तिरिक्खोघं । वेउब्बिय० धुविगाणं साददीणं वारसणं उज्जो० सव्वप० अट्ठ-तेरह० । थीणगिद्धि०३-अणंताणुबंधि०४-णवंस-तिरिक्खग० हुंड०तिरिक्खाणु०-दूभग-अणादें-णीचा. तिण्णिप० अट्ठ-तेरह० । अवत्त० अट्टचों । एवं मिच्छ० । णवरि अवत्त० अट्ठ-बारह । इत्थि०-पुरिस०-पंचिंदि०-पंचसंठा०-ओरालि. स्पर्शन किया है। अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। औदारिक शरीरके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू और सबलोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम बारहबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। सूक्ष्म अपर्याप्त और साधारण प्रकृतिके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। अयशःकीर्तिके तीन पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन सातावेदनीयके समान है। अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। वैक्रियक छह और तीर्थंकर प्रकृतिके सब पदोंके बन्धक जीवोंका स्पर्शन ओघके समान है । यही भंग पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी, विभंगज्ञानी, चक्षुदर्शनी, और संज्ञी जीवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि योगोंमें औदारिक शरीरके अवक्तव्य पदका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। विभंगज्ञानी जीवोंमें देवगति और देवगत्यानुपूर्वी के तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम पाँचबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है । औदारिक शरीर, वैक्रियिक शरीर और वैक्रियिक प्रांगोपांगके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम ग्यारहबटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। ७८४. काययोगी, औदारिककाययोगी, अचक्षुदर्शनी, भव्य और आहारक जीवोंमें मूल ओघके समान भङ्ग है। किन्तु यहाँ पर कुछ विशेषता है। औदारिक काययोगी जीवोंमें सामान्य तिर्यश्चोंके समान भङ्ग है।वैक्रियिककाययोगी जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियाँ, साता आदि बारह प्रकृतियाँ और उद्योतके सब पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । स्त्यानगृद्धि तीन, अनन्तानुबन्धी चार, नपुंसकवेद, तिर्यश्चगति, हुण्डसंस्थान, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, दुर्भग, अनादेय और नीचगोत्रके तीन पदोंके बन्धक जीवोंने कुछ कम पाठबटे चौदह राजू और कुछ कम तेरहबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठबटे चौदह राजु क्षेत्रका स्पर्शन किया है। इसी प्रकार मिथ्यात्वका स्पर्शन जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि इसके अवक्तव्य पदके बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम बारहवटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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