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________________ भुजगारबंधे अंतराणुगमो ३५.३ अवगदवे० सव्वाणं भुज० अप्प० जह० उक्क० अंतो० । अर्वाड० जह० एग०, उक्क० तो ० | अवत्त० णत्थि अंतरं । ७४८. कोधे धुविगाणं अट्ठारसहं दोपदा० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवट्ठि ० जह० एग०, उक्क० चत्तारि सम० । थीणगिद्धि०३ - मिच्छ०-बारसक० दोपदा० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवट्टि० जह० एग०, उक्क० चत्तारि सम० । अवत्त० णत्थि अंतरं । णिद्दा-पचला-भय-दुगुं ० -तेजइगादिणव- तित्थय० तिण्णिपदा० जह० एग०, उक्क० तो० । अवत्त • णत्थि अंतरं । चदुआयु० दोषदा० णत्थि अंतरं । सेसाणं तिष्णि पदा० जह० एग०, उक्कं० अंतो० । अवत्त० जह० उक० अंतो० । एवं माणे । णवरि धुविया सत्तारणं । कोधसंज० णिद्दाए भंगो। एवं मायाए वि । णवरि दोसंज० णिद्दाए भंगो | एवं चैव लोभे । णवरि चत्तारि संजय णिद्दाए भंगो । आहारदुगं मणजोगिभंगो । से को भंगो । 2 ७४९. मदि० - सुद० धुविगाणं दो पदा जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवट्ठि जह० एग०, उक्क० चत्तारि सम० । सादासाद० छण्णोक० ओघं सादभंगो | मिच्छ० णाणावरण भंगो । णवरि अवत्त० णत्थि अंतरं । णवु स० पंचसंठा० - पंचसंघ ० - अप्पसत्थ० 1 उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवक्तव्य पदका अन्तरकाल नहीं है । ७४. क्रोधकषायवाले जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली अठारह प्रकृतियोंके दो पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर चार समय है । स्त्यानगृद्धि तीन, मिथ्यात्व और बारह कषायके दो पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर चार समय है । अवक्तव्य पदका अन्तरकाल नहीं है । निद्रा, प्रचला, भय, जुगुप्सा, तेजस शरीर आदि नौ और तीर्थंकर प्रकृतिके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवक्तव्य पदका अन्तरकाल नहीं है। चार आयुओं के दो पदोंका अन्तरकाल नहीं है । शेष प्रकृतियोंके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवक्तव्य पदका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार मानकषायवाले जीवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि इनके ध्रुवबन्धवाली सत्रह प्रकृतियोंका "अन्तरकाल कहना चाहिए । क्रोधसंज्वलनका भङ्ग निद्राके समान है। इसी प्रकार मायाकषायवाले जीवोंके भी करना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके दो संज्वलनका भङ्ग निद्राके समान है। इसी प्रकार लोभकषायवाले जीवों के जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके चार संज्वलनका भङ्ग निद्रा के समान है । आहारकद्विकका भङ्ग मनोयोगी जीवोंके समान है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग क्रोधके समान है ७४६. मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके दो पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर चार समय है । सातावेदनीय, असातावेदनीय और छह नोकषायका भङ्ग ओघके सातावेदनीयके समान है | मिध्यात्वका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । इतनी विशेषता है कि इनके अवक्तव्य पदका अन्तरकाल नहीं है। नपुंसकवेद, पाँच संस्थान, पाँच संहनन, अप्रशस्त विहायोगति, दुर्भग, दुःस्वर और ४५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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