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________________ I भुजगारबंधे अंतराणुगमो पर० उस्सा०-तस०४ तिष्णिपदा० णाणावरणभंगो । अवत्तव्वं ओधं । ओरालि०-ओरालि० अंगो० - वजरिस० तिष्णिपदा० ओघं । अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० तेत्तीसं साग० सादि० । आहारदुगं तिष्णिपदा० जह० एग०, अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० कायट्ठिदी० | समचदु० - पसत्थ० - सुभग-सुस्सर-आदें• तिष्णिपदा० णाणावरणभंगो । अवत्त ० ओघं । तित्थय० ओघं । उच्चा० तिष्णिपदा देवगदिभंगो । अवत्त० समचदु० भंगो । ७४१. पंचमण० - पंचवचि० पंचणा० णवदंसणा ० - मिच्छ० सोलसक० -भय-दुगुं०तेजगादिणव- आहारदुग - तित्थय०- पंचंत० भुज० अप्प० जह० एग०, उक्क० अंतो० | अवट्ठि० जह० एग०, उक्क० वेसम० । अवत्त० णत्थि अंतरं । चदुआयु० दोपदा० णत्थि अंतरं । सेसाणं पगदीणं तिष्णिपदा० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवत्त० णत्थि अंतरं । एस भंगो ओरालि० वेउच्चि ० - आहार० । णवरि ओरालिए ओरालि० - वेड व्वियछक्कं व परियत्तीणं अवत्त० जहण्णु० अंतो० । दोआयु० दोपदा० जह० अंतो०, उक्क० पग दिअंतरं ० । ७४२. कायजोगीसु पंचणा० छदंसणा० चदुसंज० भय-दुर्गु० - तेजइगादिणव- वेउव्विय अवक्तव्य पदका वही अन्तर है । इतनी विशेषता है कि इसका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । पचेन्द्रिय जाति, परघात, उच्छास और त्रसचतुष्कके तीन पदोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । अवक्तव्य पदका भङ्ग ओघके समान है । औदारिक शरीर, औदारिक आङ्गोपाङ्ग और वर्षभ नाराच संहननके तीन पदोंका भङ्ग ओघके समान है । अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर साधिक तेतीस सागर है । आहारकद्विकके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है, अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कार्यस्थिति प्रमाण है । समचतुरस्र संस्थान, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर और आदेयके तीन पदोंका भङ्ग ज्ञानावरणके समान है । अवक्तव्य पदका भङ्ग ओघ के समान है। तीर्थङ्कर प्रकृतिवा भङ्ग ओघ के समान है । उच्चगोत्रके तीन पदोंका भङ्ग देवगतिके समान है । अवक्तव्य पदका भङ्ग समचतुरस्र संस्थानके समान है । ३४७ ७४१. पाँच मनोयोगी और पाँच वचनयोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, मिध्यात्व, सोलह कपाय, भय, जुगुप्सा, तैजस शरीर आदि नौ, आहारकद्विक, तीर्थङ्कर और पाँच अन्तरायके भुजगार और अल्पतर पदका जघन्य अन्तर एक समय हैं और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर दो समय है । अवक्तव्य पदका अन्तरकाल नहीं है। चार आयुओंके दो पदोंका अन्तरकाल नहीं है। शेष प्रकृतियोंके तीन पदोंका जधन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवक्तव्य पदका अन्तरकाल नहीं है । यही भङ्ग औदारिककाययोगी, वैक्रियिककाययोगी और आहारककाययोगी जीवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि श्रदारिककाययोगी जीवों में औदारिक शरीर और वैक्रियिक छहको छोड़कर परिवर्तमान प्रकृतियोंके अवक्तव्य पदका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । दो आयुओंके दो पदोंका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और अन्तर प्रकृतिबन्धके अन्तरके समान है । ७४२, काययोगी जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, चार संज्वलन, भय, जुगुप्सा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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