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________________ ३४४ महाधे दिधाहियारे सत्थ० - थावरादि ०४ - दूभग दुस्सर -अणादे० - णीचा० तिण्णिपदा० जह० एग०, अवत० जह० अंतो०, उक्क० पुव्वकोडी देख० । पुरिस० तिष्णिपदा० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० तिष्णि पलिदो० दे० । चदुआयु० तिरिक्खोघं । देवगदिपंचिंदि ० - वेउच्चि ० - समचदु० - वेउन्त्रि ० अंगो० देवाणुपु० परघा० उस्सा० पसत्थ० -तस०४सुभग-सुस्सर-आदेज्ज ० उच्चा० तिष्णिपदा० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवत्त० जह० उक्क० पुव्वकोडी देसू० i अंतो" I ७३७. पंचिंदियतिरिक्खअपज्जत्तगे धुविगाणं दो पदा० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अवट्टि ० जह० एग०, उक्क० तिष्णिसम० । सेसाणं तिष्णिपदा जह० एग०, उक्क० अंतो०, अवत्त० जह० उक्क० अंतो । दोआयु० दोपदा० जह० उक्क० अंतो० । एवं सव्वअपज्जत्ताणं एइंदिय - विगलिंदिय-पंचकायाणं च । णवरि यो जस्स भुजगारकालो सो अवट्टि - दस्स अंतरं होदि । यो अवट्ठिदकालो सो भुज० - अप्पद० अंतरं होदि । आयुगाणं दोष्णं पदाणं पगदिअंतरं कादव्वं । किंचि विसेसो | ७३८. मणुसेसु पंचणा० छदंसणा ० - चंदु संज ०-भय-दुर्गु० - णामणव- पंचंत० तिणिपदा० ओघं । अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० पुव्विकोडिपुध० । आहारदुगं तिष्णिपदा० जह० एग०, अवत्त० जह० अंतो०, उक्क० पुव्विकोडि धत्तं । तित्थय० तिष्णिपदा अन्तर एक समय है, अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर सबका कुछ कम एक पूर्वकोटि है । पुरुषवेदके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय हैं और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है | अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम तीन पल्य है। चार आयुका भङ्ग सामान्य तिर्यञ्चों के समान है । देवगति, पञ्चेन्द्रिय जाति, वैक्रियिक शरीर, समचतुर संस्थान, वैयिक आङ्गोपाङ्ग, देवगत्यानुपूर्वी, परघात, उच्छ्वास, प्रशस्त विहायोगति, चतुष्क, सुभग, सुस्वर, आदेय और उच्चगोत्रके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त हैं । अवक्तव्य पढ़का जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर कुछ कम एक पूर्वकोटि है। ७३७. पञ्चेन्द्रिय तिर्यञ्च अपर्याप्तकोमं ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके दो पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवस्थित पदका जघन्य अन्तर एक समय है. और उत्कृष्ट अन्तर तीन समय है । शेष प्रकृतियोंके तीन पदोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । अवक्तव्य पदका जधन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । दो आयुओंके दो पदोंका जघन्य और उत्कृष्ट अन्तर अन्तर्मुहूर्त है । इसी प्रकार सब अपर्याप्तक, एकेन्द्रिय, विकलत्रय और पाँच स्थावरकायिक जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि जो जिसका भुजगारबन्धका काल है वह उसके अवस्थितबन्धका अन्तरकाल होता है तथा जो अवस्थितबन्धका काल है वह भुजगार और अल्पतरबन्धका अन्तर काल होता है। तथा आयुओं दोनों पदोंका प्रकृतिबन्धके अन्तरके समान अन्तर करना चाहिए । कुछ विशेषता है । 1 ७३८. मनुष्यों में पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, चार संज्वलन, भय, जुगुप्मा, नामकी नो प्रकृतियाँ और पाँच अन्तरायके तीन पढ़ोंका भङ्ग ओघ के समान है । अवक्तव्य पदका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर पूर्वकोटिपृथक्त्वप्रमाण है । आहारकद्विकके तीन पदोंका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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