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________________ महाबंधे डिदिबंधाहियारे ७२३. मणुसा०३ सव्वाणं भुज-अप्प० जह० एग०,उक्क०बेसम०। अवढि०-अवसव्वं ओघं। एवं मणुसभंगो पंचमण-पंचवचि०-ओरालि०-वेउवि० वेउव्वियमि०-आहारआहारमि० विभंग-आमि० सुद०-ओधि०-मणपज्ज०-संजद-सामाइ०-छेदो०-परिहार०संजदासंजद-ओधिदं०-तेउ०-पम्म०-सुकले०-सम्मादि०-खइग०-वेदगस०-उवसम०सासण-सम्मामि-सण्णि त्ति । मणुसअपज्ज० पोरइगभंगो । एवं देवाणं एइंदिय-विगलिंदिय-पंचकायाणं च।। ७२४. पंचिंदिय०२ चदुआयु० ओघं । वेउन्वियछक्क-आहारदुग-तित्थय० चदुजादिआदाव-थावर सुहुम-साधार० भुज० अप्पद० जह० एग०, उक्क० वेसम० । अवट्टि०-अवत्तव्वं ओघं। सेसाणं भुज०-अप्प० जह० एग०, उक० तिण्णिसम० । अवढि० अवत्त० ओघं । मणुसग०-मणुसाणु० उच्चा० भुज० जह० एग०, उक० तिण्णिसम० । अप्पद० जह० एग०, उक्क० वेसम । अवढि०-अवत्त० ओघं। पज्जत्त० अपज्जत्तणामाणं देवगदिभंगो। पंचिंदियअपज्ज० तिरिक्खअपज्जत्तभंगो। णवरि मणुसग०-मणुसाणु० भुज. जह० एग०, उक्क० तिण्णिसम० । अप्पद० जह० एग०, उक्क० वेसम० । अवढि०-अवत्त० ओघ । ७२३. मनुष्यत्रिकमें सब प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतरपदका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल दो समय है । अवस्थित और अवक्तव्यपदका भङ्ग ओघके समान है। इसीप्रकार मनुष्योंके समान पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगी, औदारिक काययोगी, वैक्रियिकयोगी, वैक्रियिक मिश्रकाययोगी, आहारककाययोगी, आहारकमिश्रकाययोगी, विभङ्गज्ञानी आभिनिवोधिकज्ञानी, श्रुतज्ञानी अवधिज्ञानी, मनःपर्ययज्ञानी, संयत,सामायिकसंयत, छेदोपस्थापनासंयत, परिहारविशुद्धिसंयत, संयतासंयत,अवधिदर्शनी,पीतलेश्यावाले, पद्मलेश्यावाले,शुक्ललेश्यावाले, सम्यग्दृष्टि, क्षायिकसम्यग्दृष्टि, वेदकसम्यग्दृष्टि, उपशम सम्यग्दृष्टि; सासादनसम्यग्दृष्टि, सम्यग्मिथ्यादृष्टि और संज्ञी जीवोंके जानना चाहिये । मनुष्य अपर्याप्तकोंमें नारकियोंके समान भङ्ग है। इसीप्रकार देव, एकेन्द्रिय, विकलेन्द्रिय और पाँच स्थारकायिक जीवोंके जानना चाहिये । ७२४. पश्चेन्द्रियद्विकमें चार आयुओंका भङ्ग ओघके समान है। वैक्रियिक छह, अहारकद्विक, तीर्थङ्कर, चार जाति, आतप, स्थावर, सूक्ष्म और साधारणके भुजगार और अल्पतर पदका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल दो समय है। अवस्थित और अवक्तव्य पदका काल ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंके भुजगार और अल्पतर पदका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल तीन समय है। अवस्थित और अवक्तव्य पदका भङ्ग ओघके समान है। मनुष्यगति, मनुष्यगत्यानुपूर्वी और उच्चगोत्रके भुजगारपदका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल तीन समय है। अल्पतर पदका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्टकाल दो समय है। अवस्थित और अवक्तव्य पदका भङ्ग ओघके समान है । पर्याप्त और अपर्याप्त नामका भङ्ग देवगतिके समान है। पञ्चेन्द्रिय अप्तिकोंमें तिर्यञ्च अपर्याप्तकोंके समान भङ्ग है । इतनी विशेषता है कि मनुष्यगति और मनुष्यगत्यानुपूर्वीके भुजगार पदका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्टकाल तीन समय है। अल्पतरपदका जघन्यकाल एक समय है और उत्कृष्ट काल दो समय है। अवस्थित और अवक्तव्य पदका भङ्ग ओघके समान हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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