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________________ महाबंधे हिदिबंधाहियारे अण्ण. तिगदियस्स। अवत्त० कस्स० ? अण्ण. उवसम० परिवदमा० मणुस० मणुसिणीए वा । सेसाणं ओघादो साधेदव्वं । णवरि तिगदियस्स । एवं पुरिस० । णवरि णिदा-पचलादंडयस्स ओघो । सेसाणं वि ओघो । णqसगे इत्थिभंगो । अवगदवे० भुज० अवत्त० कस्स० ? अण्ण० उनसम० परिवदमा० पढमसमय० । अप्पद०-अवढि कस्स० ? अण्ण उवसम० खवग० । एवं सव्वाणं । ७१६. कोधे३ पंचणा०-चदुदंस०-पंचंत० तिण्णिपदा कस्स० ? अण्ण । कोधे चदुसंज. माणे तिणि संज० मायाए दो संज० णिदा-पवला-भय-दुगु० तेजइगादिणव० ओघो। सेसाणं ओघं । लोभे [१४] कोधभंगो । सेसं ओघं । ७१७. मदि०-सुद० धुविगाणं तिण्णिपदा कस्स० ? अण्ण० । मिच्छ० अवत्त० ओरालियमिस्सभंगो । सेसाणं ओघेण साधेदव्वं । एवं विभंग०-अब्भवसि०-मिच्छादि० । णवरि दोसु मिच्छत्तस्स अवत्त० णत्थि । __७१८. मणपज्जव० संजदे धुविगाणं मणुसभंगो। एवं सेसाणं पि। सामाइ० जुगुप्सा, तैजसशरीर और कार्मणशरीरसे लेकर निर्माण तक प्रकृतियोंके तीन पदाका स्वामी कौन है ? अन्यतर तीन गतिका जीव उक्त पदोंका स्वामी है। अवक्तव्य पदका स्वामी कौन है ? उपशमश्रेणिसे गिरनेवाला अन्यतर मनुष्य या मनुष्यनी अवक्तव्य पदका स्वामी है। शेष प्रकृतियोंके पदोंका स्वामित्व अोधसे साध लेना चाहिए। इतनी विशेषता है कि तीन गतिके जीवके स्वामित्व कहना चाहिए। इसी प्रकार पुरुषवेदी जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि इनके निद्रा और प्रचला दण्डकका भङ्ग ओघके समान है। शेष प्रकृतियोंके पदोंका स्वामित्व भी ओषके समान हैं। नपुंसकवेदी जीवोंमें स्त्रीवेदी जीवोंके समान भङ्ग है। अपगतवेदी जीवोंमें भुजगार और अवक्तव्य पदका स्वामी कौन है ? उपक्षमश्रेणिसे गिरनेवाला प्रथम समयवर्ती अन्यतर जीव उक्त पदोंका स्वामी है। अल्पतर और अवस्थितपदका स्वामी कौन है ? अन्यतर उपशामक या क्षपक अन्यतर जीव उक्त पदोंका स्वामी है। इसी प्रकार सब प्रकृतियोंका स्वामित्व जानना चाहिए। ७१६. क्रोध, मान और माया कषायवाले जीवोंमें पाँच ज्ञानावरण, चार दर्शनावरण और पाँच अन्तरायके तीन पदोंका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव तीन पदोंका स्वामी है। क्रोधकषायवाले जीवोंमें चार संज्वलन, मान कषायवाले जीवोंमें तीन संज्वलन और मायाकषायवाले जीवोंमें दो संज्वलन तथा निद्रा, प्रचला, भय, जुगुप्सा और तैजसशरीर आदि नौ प्रकृतियोंका भङ्ग ओघके समान है। तथा शष प्रकृतियोंके पदोंका स्वामित्व ओघके समान है। लोभ कषायवाले जीवोंमें चौदह प्रकृतियोंका भङ्ग क्रोध कपायवाले जीवोंके समान है। शेष प्रकृतियोंके पदोंका स्वामित्व ओघके समान है। ७१७. मत्यज्ञानी और श्रुताज्ञानी जीवोंमें ध्रुवबन्धवाली प्रकृतियोंके तीन पदोंका स्वामी कौन है ? अन्यतर जीव तीन पदोंका स्वामी है । मिथ्यात्वके अवक्तव्य पदका स्वामित्व औदारिक मिश्रकाययोगी जीवों के समान है। शेष प्रकृतियों के पदोंका स्वामित्व ओघसे साध लेना चाहिए। इसी प्रकार विभङ्गज्ञानी, अभव्य और मिथ्यादृष्टि जीवोंके जानना चाहिए। इतनी विशेषता है कि अभव्य और मिथ्याइष्टि इन दो मार्गणाओंमें मिथ्यात्वका अवक्तव्य पद नहीं है। ७१८. मनःपर्ययज्ञानी और संयत जीवोंमें धवनन्धवाली प्रतियोंका भङ्ग मनुष्योके समान Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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