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________________ ३२२ महाबंधे टिदिबंधाहियारे यढि० विसे० । चदुसंज० ज०वि० विसे० । यढि० विसे० । अरदि-सोग-अजस० ज.. द्वि० संखेज०। यढि० विसे । असादा० ज०ट्ठि. विसे । यढि० विसे । पञ्चक्खाणा०४ ज०ट्ठि० संखेन्ज । यढि० विसे० । अपचक्खाणा०४ ज०टि संखेज्ज । यहि विसे० । मणुसग०-ओरालि जट्ठि० संखेज्ज० । यहि विसे । ६९०. सासणे सव्वत्थो० तिरिक्ख०-मणुसायु० जट्ठि० । यहि. विसे । देवायुग० ज०ढि० संखेज्ज० । यढि० विसे । पंचणोक-तिण्णिगदि-चदुसरीर-जस०णीचा० उच्चा० ज०वि० असंखेज०। यढि० विसे० । अरदि-सोग-अजस० जट्ठि. विसे० । यहि. विसे । इत्थि० ज०वि० विसे । यहि विसे० । पंचणा०-णवदंसणा०-सादा०-पंचंत० जगढ० विसे० । यहि विसे० । असादा० ज०ट्ठि० विसे० । यट्टि० विसे० । ६६१. सम्मामिच्छादिहि ति सव्वत्थोवा पंचणोक०-दोगदि-चदुसरीर-जसगित्तिउच्चागो० जहण्णद्विदिबंधो । यहिदिबंधो विसेसाधियो। पंचणाणावरणीयाणं छदसणावरणीयाणं सादावेदणीयं पंचंतराइगं० ज.हि. विसे । यहि विसे० । बारसक० ज०. अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे चार संज्यलनका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे अरति, शोक और अयशाकीतिका जघन्य स्थितिवन्ध संख्यातगुणा है । इससे यस्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इसमें असातावेदनीयका जघन्य स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिवन्ध विहोप अधिक है । इससे प्रत्याख्यानावरण चारका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थिनिबन्ध विशेष अधिक है। इससे अप्रत्याख्यानावरण चारका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यस्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे मनुष्यगति और औदारिक शरीरका जघन्य स्थिनिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यरिस्थ तिवन्ध विशेष अधिक है। ६६०. सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । इससे यस्थितिवन्ध विशेष अधिक है । इससे देवायुका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच नोकपाय, तीन गति, चार शरीर, यशः कीर्ति, नीचगोत्र और उच्चगोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध असंख्यातगुणा है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे अरति, शोक और अयशःकीतिका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे स्त्रीवेदका जघन्य स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे यरिस्थतिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच ज्ञानावरण, नौ दर्शनावरण, सातावदनीय और पाँच अन्तरायका जवन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यतिधनिबन्ध विशेष अधिक है। इससे असातावेदनीयका जघन्य स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिवन्ध विशेष अधिक है। ६६१. सम्यग्मिथ्याटष्टि जावा में पांच नोकपाय, दो गति, चार शरीर, यशःकीर्ति और उच्चगोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध मवसे स्तोक है। इससे यतिम्धतिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच ज्ञानावरणीय, छह दर्शनावरणीय, सातावदनीय और पाँच अन्तराय का जवन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। उससे यत्स्थितितन्ध विठोप अधिक है। इससे बारह कपायका जघन्य स्थिनिबन्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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