SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 325
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३१२. महाबंधे टिदिबंधाहियारे क्खग०-णीचा० जटि संखेज्ज०। यट्टि विसे० । इत्थि० जट्टि० विसे । यहि विसे० । णबुंस० ज.हि. विसे । यहि. विसे । थीणगिद्धि०३ ज०हि. विसे । यहि. विसे० । अणंताणुबंधि०४ ज.हि. विसे० । यहि विसे । मिच्छ० जट्टि विसे । यहि० विसे । ६७२. आहार०--आहारमिस्सका. सव्वत्थोवा देवायु० ज०हि । यहि विसे । पंचणोक०-देवगदि-तिएिणसरीर०--जस --उच्चा० जहि संखेंज० । यट्टि. विसे० । अरदि-सोग-अजस० जट्टि विसे०। यहि० विसे। पंचणा०-छदंसणा०सादा०-पंचंत० ज०हि विसे । यहि विसे । असाद० ज०हि. विसे । यहि विसे । चदुसंज० जहि० विसे । यट्टि विसे० । ६७३. इथिवे. सव्वत्थोवा तिरिक्ख-मणुसायु० ज०हि० । यहि. विसे० । दोआयु० ज०हि० संखेंजगु । यहि विसे० । पुरिस० ज०हि० संखेंज । यहि० विसे० । चदुसंज० ज०हि० विसे । यहि. विसे। पंचणा --चदुदंस --पंचंत० छोड़कर वैक्रियिक मिश्रकाययोगी जीवोंमें जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि तिर्यश्चगति और नीचगोत्रका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे स्त्रीवेदका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे नपुंसकवेदका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे स्त्यानगृद्धि तीनका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिवन्ध विशेष अधिक है। इससे अनन्तानुबन्धी चारका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे मिथ्यात्वका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। ६७२. आहारक काययोगी और आहारक मिश्रकाययोगी जीवों में देवायुका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच नोकषाय देवगति, तीनशरीर, यश-कीर्ति और उच्चगोत्रका जघन्य स्थितिबन्धसंख्यातगुणा है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे अरति, शोक और अयशःकीर्ति का जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, सातावेदनीय और पाँच अन्तरायका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे असातावेदनीयका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे चार संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। ६७३. स्त्रीवेदी जीवोंमें तिर्यञ्चायु और मनुष्यायुका जघन्य स्थितिबन्ध सबसे स्तोक है । इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे दो आयुओंका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगणा है। इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पुरुषवेदका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यस्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे चार संज्वलनका जघन्य स्थितिबन्ध विशेष अधिक है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे पाँच शानावरण चार दर्शनावरण और पाँच अन्तरायका जघन्य स्थितिबन्ध संख्यातगुणा है । इससे यत्स्थितिबन्ध विशेष अधिक है। इससे यशःकीर्ति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy