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________________ जहण्णअंतरकालपरूवणा २५६ ५६०. जहएणए पगदं । दुवि०-अोवे० प्रादे० । ओघे० खवगपगदीणं जह० जह• एग०, उक्क छम्मासं० । अज० पत्थि अंतरं । तिण्णिायु-चेउव्वियछ०तिरिक्खग-अाहारदुग-तिरिक्खाणु०-उज्जो०-तित्थय०-णीचा० उक्स्सभंगो । सेसाणं जह० अज० णत्थि अंतरं । एवं ओघभंगो कायजोगि--ओरालियका०--णवुस०-- कोधादि०४-अचक्खु०-भवसि-पाहारगे त्ति । __५६१. तिरिक्खेसु तिएिणआयु०-वेउब्बियछ--तिरिक्वगदि०४ जह• अज. उक्कस्सभंगो। सेसाणं जह• अज० पत्थि अंतरं । एवं तिरिक्वोघं ओरालियमि० [ कम्मइ०-] मदि०--सुद०--असंज०--तिएिणले०--अब्भवसि-मिच्छादि०-असएिणअणाहारे त्ति । एवरि ओरालियमि० कम्मइ०-अणाहारगेसु देवगदि०४--तित्थय० जह० अज० उक्कस्सभंगो।। ५६२. मणुस०३ खवगपगदीणं अोघो । सेसाणं उक्कस्सभंगो। णवरि मणुसि० खवगपगदीणं वासपुधत्तं० । ५६३. एइंदिय-बादरेइंदिय--पजत्ता अपज्जत्ता मणुसायु० तिरिक्खगदि०४ उकस्सभंगो । सेसाणं जह• अज० पत्थि अंतरं । सव्वसुहुमाणं मणुसायु० ओघं । ५६०. जघन्यका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-ओघ और आदेश । ओघसे क्षपक प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट अन्तर छह महीना है। अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका अन्तर काल नहीं है । तीन आयु, वैक्रियिक छह, तिर्यञ्चगति, आहारकद्विक, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, उद्योत, तीर्थङ्कर और नीचगोत्र इनका भङ्ग उत्कृष्टके समान है। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका अन्तर काल नहीं है। इसी प्रकार ओघके समान काययोगी, औदारिककाययोगी,नपंसकवेदी, क्रोधादि चार वेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, अचक्षुदर्शनी, भव्य और आहारक जीवोंके जानना चाहिए। ५६१. तिर्यञ्चों में तीन आयु, वैक्रियिक छह और तिर्यञ्चगति चतुष्ककी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका भङ्ग उत्कृष्टके समान है। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका अन्तर काल नहीं है। इसी प्रकार सामान्य तिर्यञ्चोंके समान औदारिकमिश्रकाययोगी, कार्मणकाययोगो, मत्यशानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, तीन लेश्यावाले, अभव्य, मिथ्यादृष्टि, असंज्ञी और अनाहारक जीवोके जानना चाहिये । इतनी विशेषता है कि औदारिकमिश्रकाययोगो, कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंमें तीर्थङ्कर प्रकृतिकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका अन्तर काल उत्कृष्टके समान है। ५६२. मनुष्यत्रिकमें क्षपक प्रकृतियोंका भङ्ग श्रोधके समान है। शेष प्रकृतियोंका भङ्ग उत्कृष्टके समान है । इतनी विशेषता है कि मनुष्यनियों में क्षपक प्रकृतियोंकी जघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका उत्कृष्ट अन्तर काल वर्षपृथक्त्व है। ५६३. एकेन्द्रिय, बादर एकेन्द्रिय और इनके पर्याप्त-अपर्याप्त जीवोंमें मनुष्यायु और तिर्यश्रगतिचतष्कका भङ्ग उत्कृष्टके समान है। शेष प्रकृतियोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिके बन्धक जीवोंका अन्तर काल नहीं है। सब सूक्ष्म जीवों में मनुष्यायुका भङ्ग ओघके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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