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________________ उक्कस्ससत्थाणबंधसणिया सुपरूवणा ११ गदि- दोसरी० - दोअंगो० -अप्पसत्थ० - दोश्राणु० -उज्जो० सिया बं० सिया अवं० । यदि ० । तं तु० । एवं दुस्स० । २१. सुहुम उक्क० हिदि ०० अ० तिरिक्खग० - एइंदि० - ओरालि० - तेजा ० क ०हुडसं० - वरण ०४ - तिरिक्खाणु ० गु० - उप० -थावर ० अथिरादिपंच० - णिमि० गिय० चं० । अणु संखेज्जदिभागू० । पर० - उस्सास -पज्जत्त - पत्ते ० सिया बं० सिया ० । यदि वं० ०ि अणु संखेज्जदिभागू० । एवं साधारण० । २२. पज्ज० उक्क० हिदिबं० तिरिक्खगदि - ओरालि०- तेजा० क० - हुडसं० वरण ०४ - तिरिक्खाणु० गु० - उप० अथिरादिपंच० - णिमि० यि ० । अणु० संखेज्जदिभागूणं बंधदि एइंदि० - पंचिंदि० ओरालि० अंगो०-तस - थावर - बादरपत्ते० सिया बैं० सिया अवं० । यदि बं० गिय० अणु संखेज्जदिभागूणं बंधदि । बीइंदि० तीइंदि० चदुरिं०-मुहुम-साधार० सिया बं० सिया बं० । यदि बं० । णि० तं तु० । O २३. थिरणाम उक० द्विदिवं ० तेजा० क० - वरण०४ - अगु० - उप० परघादऔर अनुत्कृष्ट भी बाँधता है । यदि अनुत्कृष्ट बाँधता है, तो एक समय न्यूनसे लेकर पल्यका श्रसंख्यातवाँ भाग न्यून तक स्थितिका बन्धक होता है। इसी प्रकार दुखर प्रकृतिके श्राश्रयसे सन्निकर्ष आनना चाहिए । २१. सूक्ष्म प्रकृतिकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला जीव तिर्यञ्चगति, एकेन्द्रिय जाति, औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, हुण्ड संस्थान, वर्णचतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, अगुरुलघु, उपघात, स्थावर, अस्थिर आदि पाँच और निर्माण प्रकृतियोंका नियमसे बन्धक होता है, वह अनुत्कृष्ट संख्यातवाँ भाग न्यून स्थितिका बन्धक होता है । परघात, उच्छास, पर्याप्त और प्रत्येक प्रकृतिका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् प्रबन्धक होता है । यदि बन्धक होता है, तो नियमले अनुत्कृष्ट संख्यातवाँ भाग न्यून स्थितिका बन्धक होता है । इसी प्रकार साधारण प्रकृतिके आश्रयसे सन्निकर्ष जानना चाहिए | २२. अपर्याप्त प्रकृतिको उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला जीव तिर्यञ्चगति, औदारिक शरीर, तैजस शरीर, कार्मण शरीर, हुण्ड संस्थान, वर्णचतुष्क, तिर्यञ्चगत्यानुपूर्वी, गुरुलघु, उपघात, अस्थिर आदि पाँच और निर्माण इन प्रकृतियोंका नियमसे बन्धक होता है, वह अनुत्कृष्ट संख्यातवाँ भाग हीन बाँधता है । एकेन्द्रिय जाति, पञ्चेन्द्रिय जाति, श्रदारिक आङ्गोपाङ्ग, त्रस, स्थावर, बादर और प्रत्येक इन प्रकृतियोंका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् अबन्धक होता है । यदि बन्धक होता है, तो नियमसे अनुत्कृष्ट संख्यातवाँ भाग ही बाँधता है । द्वीन्द्रिय जाति, त्रीन्द्रिय जाति, चतुरिन्द्रिय जाति, सूक्ष्म और साधारण प्रकृतियोंका कदाचित् बन्धक होता है और कदाचित् अबन्धक होता है । यदि बन्धक होता है, तो उत्कृष्ट भी बाँधता है और अनुत्कृष्ट भी बाँधता है । यदि अनुत्कृष्ट बाँधता है, तो नियमसे उत्कृष्टसे अनुत्कृट एक समय न्यूनसे लेकर पल्यका असंख्यातवाँ भाग न्यून तक बाँधा है। २३. स्थिर प्रकृतिक उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाला जीव तैजस शरीर, कार्मण शरीर, वर्णचतुष्क, अगुरुलघु, उपघात, परघात, उच्छ्वास, पर्याप्त और निर्माण इन प्रकृ-. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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