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________________ २२२ महाबंधे द्विदिबंधाहियारे सादा० 91 पजत्त- पत्ते ० -अथिरादिपंच णिमि० णीचा० - पंचंत० उक्क० खेतं । अणु ० लो० असंखे० [० - हस्त-रदि- तिरिक्खगदि - एइंदि० - श्ररालि० - तिरिक्खाणु ० थावरादि ०४ - थिर - सुभ० उक्क० अणु० लो० असंखेज दि० सव्वलो० । उज्जो०जसगि० उक्क० अणु ० लोग० श्रसंखे० सत्तचो० । बादर० उक्क० खेत्तं । अणु ० सन्तचों | सेसाणं खेत्तं । O सव्वलो ० | ०. ४८४ देवे इत्थि० - पुरिस० - दो आयु ० - मणुसग ० - पंचिंदि० - पंचसंठा०ओरालि० अंगो० - जस्संघड० - मणु साणु ० - आदाव- दो विहा० - तस - सुभग दुस्सर-आदेज ०तित्थय० - उच्चा० उक्क० अणु० अट्ठचोद्दस० । सेसाणं उक्क० अणु • अट्ठ - णवचोदस० । एवं सव्वदेवाणं पप्पणी फोसणं कादव्वं । ४८५. एईदिए उजो० बादर० - जस० उक्क • खेत्तं । अणु • थावरपगदीणं उक्क० अणु० सव्वलो० । दोश्रयु० तिरिक्खोघं । उक्क० सत्तचद्दस० । अणु० सव्वलो० | सेसाणं पगदीणं सव्वलो० । बादरएइंदि० पजत्तापजत्त० थावरपगदीगं उक्क० पाँच, निर्माण, नीचगोत्र और पांच अन्तराय इनकी उत्कृष्ट स्थिति के बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। साता वेदनीय, हास्य, रति, तिर्यञ्चगति, एकेन्द्रिय जाति, दारिकशरीर, तिर्यगत्यानुपूर्वी, स्थावर आदि चार, स्थिर और शुभ इनकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थिति के बन्धक जीवोंने लोकके असंख्यात वें भाग प्रमाण और सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । उद्योत और यश कीर्ति इनकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने लोकके श्रसंख्यातवेंभाग प्रमाण और कुछ कम सात बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । बादर प्रकृतिकी उत्कृष्ट स्थिति बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम सात बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष प्रकृतियोंकी मुख्यता से स्पर्शन क्षेत्रके समान है । ४८४. देवोंमें स्त्रीवेद, पुरुषवेद, दो आयु, मनुष्यगति, पञ्चेन्द्रिय जाति, पांच संस्थान, दारिक गोपांग, छह संहनन, मनुष्यगत्यानुपूर्वी, आतप, दो विहायोगति, त्रस, सुभग, दुःस्वर, आय, तीर्थङ्कर और उच्चगोत्र इनकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछकम आठ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थिति बन्धक जीवोंने कुछ कम आठ बटे चौदह राजू और कुछ कम नौ बटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । इसी प्रकार सब देवोंके अपना-अपना स्पर्शन कहना चाहिए । ४८५. एकेन्द्रियोंमें स्थावर प्रकृतियोंको उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । दो आयुओंका भङ्ग सामान्य तिर्यवोंके समान है । उद्यो, बादर और यशःकीति इनकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम सातबटे चौदह राजू क्षेत्रका स्पर्शन किया है । अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंका स्पर्शन क्षेत्र के समान है । अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने सब लोक क्षेत्रका स्पर्शन किया है । बादर एकेन्द्रिय और इनके पर्याप्त और अपर्याप्त जीवोंमें स्थावर प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीवोंने कुछ कम सातवटे For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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