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________________ २०८ महाबंधे दिदिबंधाहियारे अयंता । मणुसायु० उक्क० अणु० ओघं । सेसाणं उक्क अणु अणंता । ४५७. पंचिंदिय--तसपज्जत्ता०२ तिगिण आयु० तित्थय० उ०हि०० संखेज्जा। अणु० असंखेजा। आहार०२ उक्क. अणु० संखेज्जा । सेसाणं उक० अणु असंखेज्जा । एवं पंचमण-पंचवचि -इत्थि-पुरिस०-चक्खु०-सणिण त्ति । पंचिंदि०तसअपज्जत्त तिरिक्खभंगो । ४५८. वेउवि०-वेवि० [मिस्स०] देवोघं । वरि मिस्से तित्थय० दो वि पदा संखेज्जा । श्राहार०--आहारमिस्स-अवगदवे--मणपज्जव--संजद-सामाइय-- छेदोव० परिहार -सुहमसं० सव्यपगदीणं उक्क० अणु० हि०० के० ? संखेज्जा। ४५६. विभंगे तिरिणायु० उ०ट्टि बं० के० ? संखेज्जा ! अणु० के० ? असंखेज्जा। सेसाणं उक्क अणु हि०बं० केत्ति० ? असंखेज्जा। आभि०-सुद०-ओधि० मणुसायु०-आहार०२ दो वि पदा संखेंज्जा । देवायु०-तित्थय० उ०हिब केत्ति ? संखेज्जा । अणु० असंखेज्जा । सेसाणं उ० अणु० हि०० के० ? असंखेंज्जा । एवं ओधिदं०-सम्मादि०-वेदगसम्मा०-[उवसमसम्मा० । वरि उवसमस० आहार०२तित्थय० दो वि पदा संखेज्जा। संजदासंजदेसु देवायु० उ०हि०बं० संखेज्जा। अणु० उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव ओघके समान हैं। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव अनन्त हैं। ४५७. पञ्चेन्द्रिय, पञ्चेन्द्रियपर्याप्त, त्रस और प्रसपर्याप्त जीवोंमें तीन आयु और तीर्थङ्कर प्रकृतिकी उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव संख्यात हैं। अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यात है। आहारक द्विकको उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव संख्यात हैं। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यात हैं। इसी प्रकार पाँच मनोयोगो, पाँच वचनयोगी, स्त्रीवेदो, पुरुषवेदी चक्षुदर्शनी और संशी जीवोंके जानना चाहिए। पञ्चेन्द्रिय अपर्याप्त और त्रस अपर्याप्त जीवोंमें तिर्यञ्चोके समान भङ्ग हैं ४५८. वैक्रियिक काययोगी और वैक्रियिक मिश्रकाययोगी जीवों में सामान्य देवोंके समान भङ्ग हैं। इतनी विशेषता है कि वैक्रियिक मिश्रकाययोगमें तीर्थंकर प्रकृतिके दोनों ही पदवाले जीव संख्यात है । आहारक काययोगी, आहारक मिश्रकाययोगी, अपगतवेदो, मनःपर्ययज्ञानी, संयत, सामयिक संयत, छेदोपस्थापना संयत, परिहारविशुद्धि संयत और सूक्ष्मसाम्पराय संयत जीवोंमें सब प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं। ४५९, विभङ्ग ज्ञानी जीवोंमें तीन आयुओंकी उत्कृष्ट स्थितिके वन्धक जीव कितने हैं संख्यात हैं। अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं ? शेष प्रकृतियों की उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव कितने हैं ! असंख्यात हैं। आभिनिबोधिक ज्ञानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवों में मनुष्यायु और आहारक द्विकके दोनों ही पदवाले जीव संख्यात हैं। देवायु और तीर्थंकर प्रकृतिको उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव कितने हैं ? संख्यात हैं । अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव असंख्यात हैं। शेष प्रकृतियोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव कितने हैं ? असंख्यात हैं। इसी प्रकार अवधिदर्शनी, सम्यगदृष्टि, वेदक सम्यग्दृष्टि और उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि उपशम सम्यग्दृष्टि जीवों में आहारक द्विक और तीर्थङ्कर प्रकृतिके दोनों ही पदवाले जीव संख्यात हैं। संयतासंयत जीवोंमें देवायुकी उत्कृष्ट स्थितिके वन्धक जीव संख्यात हैं। अनुकृप For Private & Personal Use Only ८८. पा Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.001390
Book TitleMahabandho Part 3
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1999
Total Pages510
LanguagePrakrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size13 MB
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